कंवर जनजाति | Kanwar Tribe in Hindi

कंवर जनजाति

इस पोस्ट मे कंवर जनजाति (Kanwar Tribe in Hindi) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।


Kanwar Tribes Overview
जनजाति का नाम कंवर जनजाति
कंवर जनजाति का गोत्र बघवा, बीछी, बिलवा, बोकरा, चंद्रमा, चीता, चुवा, धनगुरु, गोबरा, हुड़रा, लोधा, सुआ, सोनवानी, भैसा आदि कंवर जनजाति के प्रमुख गोत्र है।
कंवर जनजाति की उपजाति राठिया, पैकरा, चेख़ा, दुधकंवर
निवास स्थान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात और अंध्र प्रदेश
भाषा एवं बोली छत्तीसगढ़ी, सदरी, नागपुरी और हिंदी
कुल जनसंख्या 88,7477

कंवर जनजाति (Kanwar janjati)- कंवर जनजाति (Kanwar Caste) छत्तीसगढ़, मध्य्रदेश, झारखण्ड, ओडिशा और महाराष्ट्र राज्यों में पाई जाती है। यह जनजाति छत्तीसगढ़ राज्य में रायगढ़, सरगुजा, सूरजपुर, रायपुर, राजनांदगाव, महासमुंद, धमतरी, बिलासपुर, जिले में निवास करती करती है। 2011 की जनगणना के अनुसार कंवर जनजाति की जनसंख्या 887477 है जिनमे से पुरुषों की 441242 है और महिलाओं की संख्या 446235 है। कंवर जनजाति को कुरुवंशी तथा चंद्रवंशी भी कहते है एवं कंवर caste (ST) जनजाति में आती है। कंवर जनजाति की उपजाति राठिया, पैकरा, चेख़ा, दुधकंवर आदि हैं। अधिकांश कंवर जनजाति के लोगों के गांव पहाड़ी क्षेत्रों में बसी हुयी हैं।


कंवर जनजाति का इतिहास (Kanwar Tribes History):-

दंतकथाओं के आधार पर कुरुक्षेत्र में 'कौरव-पांडव के महासंग्राम के बाद शेष बचे कौरववंशी स्वयं को बचाने के प्रयास में जंगलों में जा छिपे और कंदमूल तथा वनोपज संग्रह और शिकार में अपना जीवनयापन करने लगे। इन्हीं के वंशज कालान्तर में कंवर कहलाये। लोगो का ऐसा मानना है कि कंवर जनजाति का इतिहास एवं इनकी उत्पत्ति महाभारत के कौरव वंश से हुई हैं। महाभारतकाल में पांडवो द्वारा हस्तिनापुर के युद्ध में पराजित कर दिया था। महाभारत युद्ध के पश्चात कौरव के पराजय के बाद बची हुई दो गर्भवती स्त्रियां वहां से भाग कर छत्तीसगढ़ के उत्तर भाग में जंगल की ओर आ गई जहां पर एक स्त्री ने चरवाहा (राउत) और दूसरी स्त्री ने धोबी के घर में शरणार्थी रूप में शरण ले ली और यही पर एक महिला ने पुत्र तथा दूसरी महिला ने पुत्री को जन्म दिया। तथा दोनों ने मिलकर कंवर जनजाति को आगे बढ़ाया, जो आज छत्तीसगढ़ के विभिन्न भागो मे फैले हुये हैं।


प्राचीन भारतीय इतिहास में, जनजतियों के इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्थान हैं, जिनमे से कंवर जनजाति का इतिहास भी इन जनजातियों के इतिहास के बीच अपनी समृद्धि और अनोखी कहानी बयां करती है। इन्ही कहानियों मे से एक कहानी इनके नायक "राजा नारायण कंवर" जी की कहानी है, जो बांधवगढ़ के राजा थे। यह इतिहासिक सत्ता की कहानी है जो बांधवगढ़ के इतिहास से जुड़ा है। बांधवगढ़ गाँव भारत के मध्यप्रदेश राज्य में स्थित है। यह एक प्राचीन गाँव है जिसका इतिहास लगभग हजारों वर्ष पुराना है। इस गाँव के आस-पास कई घने जंगल थे, जो अपने वन्यजीवन और जंगली खजाने के लिए प्रसिद्ध थी। बांधवगढ़ गाँव के लोग मुख्य रूप से खेती-कृषि, पशुपालन, और वन्यजीवन से अपने आजीविका का सारांश निकालते थे। इसके अलावा, धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान भी इस समुदाय के लोगों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था। यहाँ के पुरातत्व और इतिहास संबंधी स्थल भी इसे और भी रोचक बनाते हैं।


कंवर जनजाति के राजा नारायण कंवर ने बांधवगढ़ के अपने शासनकाल में यहाँ के सत्ता पर अपना दावा किया था। उन्हें यह विश्वास था कि बांधवगढ़ के शासन को छलपूर्वक छीना गया है । इससे बांधवगढ़ के बघेलों और कंवर जनजाति के बीच विवाद और संघर्ष हुआ और उनके बीच युद्ध हुआ । नारायण कंवर ने अपने तेजी और वीरता से युद्ध करते हुए अपनी सत्ता वापस हासिल की और बांधवगढ़ का शासन अपने अधीन कर लिया । यह घटना बांधवगढ़ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पल है, जो कंवर जनजाति के इतिहास को भी बदल दिया । नारायण कंवर की यह विजय बांधवगढ़ के इतिहास में सत्ता के लिए जनजातियों के साथ हुए संघर्ष और समर्थन की एक उदाहरण भी है ।


कंवर जनजाति भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य और उत्तरी भागों में बसी एक जनजाति समुदाय है । यह जनजाति मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, और छत्तीसगढ़ राज्यों में निवास करती है। कंवर जनजाति के लोग मुख्य रूप से जंगलों में रहते थे और वन्यजीवन से जुड़े रहते थे । इनकी आय का स्रोत खेती, पशुपालन, और वन्यजीवनी था ।



कंवर जनजाति का रहन सहन (Lifestyle of Kanwar Janjati):-

कंवर जनजाति के लोगों के घर कच्चे मिट्टी की बनी होती है, छत के लिए खपरैल और फुस का उपयोग करते है, आमतौर पर इनके मकान 2 से 3 कमरों के होते है रसोई से सटे कमरे में कोठी बनाते है जिसमें धान संग्रहण कर के रखते है। कंवर जनजाति के लोग घर में समान साधारण होते है जैसे - मिट्टी या स्टील के बने हुए बर्तन खाट, पीढ़ा, मचिया और शिकार के लिए तीर धनुष भी रखते है, पर कंवर जनजाति के लोग कुशल शिकारी नहीं होते।


कंवर जनजाति का पहनावा (Costumes of Kanwar Janjati):-

कंवर जनजाति के महिलाएं साड़ी और ब्लाऊज़ पहनते है इनमें गोदना का भी प्रचलन है, ये आभूषण के भी शौकीन होते है पर अपनी आर्थिक स्थिति के कारण सस्ती धातु से बनी गहनों का उपयोग करते हैं और ये लोग फूल-पत्ती के भी सृंगार के रूप में उपयोग में लाते है। यहां के पुरुष मोटी धोती, गंजी, अंगा और गमछा का उपयोग करते हैं।


कंवर जनजाति का खान-पान (Foods of Kanwar Janjati):-

कंवर जनजाति के लोग चांवल और मोटे अन्न का सेवन मुख्य रूप से करते हैं, जंगल से फल - फूल और कंद - मूल एकत्रित कर उपयोग में लाते हैं और ये लोग मांसाहार भी होते है। कंवर जनजाति के लोग पीने के लिए महुआ से बने शराब का भी सेवन करते है।


कंवर जनजाति की कृषि (Kanwar Tribes Agriculture):-

कंवर समुदाय वनों के समीप खेती करते हैं और धान, मक्का, तुअर (अरहर), और विभिन्न सब्जियाँ उगाते हैं। वे अक्सर वर्षा जल पर निर्भर खेती करते हैं और मिश्रित खेती का उपयोग करते हैं। कंवर जनजाति विभिन्न जलवायु और पृष्ठभूमि क्षेत्रों में बसती है, और उनकी कृषि इन परिस्थितियों के अनुसार आदर्शित होती है। विशेष रूप से जल संसाधनों का उपयोग उनकी कृषि में महत्वपूर्ण होता है। वे जलाशयों, नदियों और झीलों के किनारे कृषि करते हैं और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न प्रकार की फसलें उत्पन्न करते हैं।

  • जैविक खेती: कंवर जनजाति अक्सर जैविक खेती की ओर अपने ध्यान केंद्रित करती है। उन्होंने परंपरागत तरीकों का उपयोग करके जैविक खेती को बढ़ावा दिया है जिसमें कीटाणुनाशकों का कम उपयोग किया जाता है।
  • खाद्य सुरक्षा: कंवर जनजाति खाद्य सुरक्षा के माध्यम से अपने समुदाय की आर्थिक और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि पर जोर देती है।
  • जल संचयन: वर्षा के पानी को संचित करने के लिए कंवर जनजाति जल संचयन की विभिन्न तकनीकों का उपयोग करती है ताकि अवकाशकाल में भी उनके पास पानी की संवादना हो सके।
  • जीवनदर्शन: कंवर जनजाति की कृषि सिर्फ आर्थिक लाभ के अलावा उनके समाजिक और धार्मिक जीवनदर्शन के साथ जुड़ी होती है।

कंवर जनजाति की लोकगीत एवं लोकनृत्य (Folk Song & Dance of Kanwar Janjati):-

कंवर जनजाति मे मुख्य रूप से बार नृत्य (प्रमुख) सुआ, भोजली, कर्मा, रहस नृत्य प्रचलित है। माना जाता है कि बार नृत्य कंवर जनजाति की देन है। तथा इसके लोकगीतो मे सुआ, भोजली, रामसप्ताह, फाग गीत व सेवा गीत प्रचलित है।


कंवर जनजाति के देवी-देवता (Lord of Kanwar Janjati):-

सगराखंड कंवर जनजाति का प्रमुख देवता है। इसके अलावा दूल्हा देव, बाहन देव, ठाकुर देव, शिकार देव, सर्वमंगला देवी, बुढ़वा रक्सा, मतीन देवी आदि भी इनके देवी देवता है। इन लोगो मे अपनी देवी देवताओ के प्रति अखण्ड विश्वास होती है।


कंवर जनजाति मे विवाह संस्कार (Wedding Ceremonies of Kanwar Janjati):-

इस जाति (Kanwar janjati in Hindi) मे विवाह 5 चरणों मे होती है-

  • मंगरी
  • द्वारा भाँगा
  • रोटी तोड़ना
  • विवाह
  • गौना

  • तथा विवाह भी पांच प्रकार से होते है - 1. पैठूल (घुसपैठ) 2. उढरीया (सहपलयान) 3. गुरावट 4. चूड़ी पहनावा (दूसरी शादी) 5. सुक प्रथा आदि।


    सुक प्रथा: भारतीय समाज में एक परंपरागत प्रथा है जिसमें एक पुरुष दूसरे पुरुष की स्त्री के साथ अवैध यौन संबंध बनाता है जब उसकी पत्नी या सहायिका अस्तित्व में होती है। इस प्रथा में, पुरुष का विवाहित होने का धर्मिक और सामाजिक स्थान नहीं परिप्रेक्ष्य होता है, और वह दूसरी महिला के साथ संबंध बना सकता है।


    सुक प्रथा के अनुसार, यदि कोई पुरुष किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाता है और उस महिला का पति अस्तित्व में होता है, तो उस पुरुष को उस महिला के बच्चों का जन्म देने की जिम्मेदारी नहीं होती। इसका मतलब होता है कि वह बच्चे उस पति के नाम से नहीं होते, और उन्हें उस पुरुष का विरासत में कोई अधिकार नहीं होता।


    सुक प्रथा के कारण, मानवाधिकारों और भावनात्मक विकास की सामाजिक प्रतिबद्धता के विरुद्ध विरोध उठा है, क्योंकि इस प्रथा के तहत महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन होता है और उन्हें समाज में समानता की दिशा में प्रतिबद्धता कम होती है।


    सुक प्रथा आजकल अधिकांशत: भारत में अवैध घोषित नहीं की जाती है और यह समाज में अभी भी कुछ स्थानों पर प्रचलित है, लेकिन सामाजिक सुधार और शिक्षा के प्रति जागरूकता के साथ इसका प्रतिष्ठान धीरे-धीरे कम हो रहा है।


    कंवर जनजातियो की भाषा (Languages of Kanwar Janjati):-

    kanwar janjati के लोगो के द्वारा छत्तीसगढ़ी, हिंदी और कण्वरी भाषा बोली जाती है। "कण्वरी" भाषा ब्राह्मी लिपि में लिखी जाती है। कण्वरी एक मुख्यत: ड्राविड़ी भाषा है और इसका ग्रामर और व्याकरण संरचना ड्राविड़ी भाषाओं से मिलता-जुलता है। कण्वरी भाषा का उपयोग कंवर समुदाय के लोग अपने आपसी संवाद में करने के लिए करते हैं। यह भाषा उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका प्रयोग गीत, कथा, और पौराणिक कथाओं के पास भी होता है।


    कंवर जनजाति का मुख्य त्योहार (Festivals of Kanwar Janjati):-

    कंवर जंजातियों की प्रमुख पर्व हरियाली, परमा एकादशी, पोला, अन्नत चौदस, तीज, पितर और दुर्गा नवमी है। कंवर जनजाति के लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को महत्वपूर्ण तरीके से मनाते हैं और अनेक प्रमुख त्योहार इसका हिस्सा हैं। निम्नलिखित हैं कुछ कंवर जनजाति के कुछ प्रमुख मुख्य त्योहार:


    करमा या करमा पूजा: करमा एक महत्वपूर्ण कंवर जनजाति का प्रमुख त्योहार है जो छत्तीसगढ़, झारखंड, और बिहार में मनाया जाता है। यह पूजा आदिवासी देवता "करमा" की पूजा होती है और इसमें धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।

    सरहुल या सरहुल पूजा: सरहुल एक महत्वपूर्ण छत्तीसगढ़ी त्योहार है जो गोंड और कांवर जनजातियों द्वारा मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान, लोग अपने देवता और प्राचीन पितृदेवता को पूजते हैं और विभिन्न रंगीन पर्वों का आयोजन करते हैं।

    नगो पूजा: नगो पूजा छत्तीसगढ़ और झारखंड में मनाया जाता है और इसमें नाग देवता की पूजा की जाती है। इस त्योहार के दौरान, लोग नाग देवता की मूर्तियों की पूजा करते हैं और विभिन्न रस्मों को मनाते हैं।

    छवरा या छवरा पूजा: यह त्योहार महत्वपूर्ण रूप से बिहार के कोई विशेष क्षेत्रों में मनाया जाता है और इसमें छवरा देवता की पूजा की जाती है।

    कंवर जनजाति के लोग अपने त्योहारों को बड़े धूमधाम और आनंद के साथ मनाते हैं और इन त्योहारों में संगीत, नृत्य, और विभिन्न प्रकार की धार्मिक रस्में शामिल होती हैं।


    महत्वपूर्ण बिन्दु (Important Point about Kanwar Janjati):-

    कंवर जनजाति के प्रमुख देवी देवता कौन कौन है?

    कंवर जनजाति के प्रमुख देवता दूल्हा देव, बाहन देव, ठाकुर देव, शिकार देव, सर्व मंगला देवी, कोसगाई देवी, बुढ़वा रक्शा, मातिन देवी, बंजारी देवी, आदि और इनके अलावा हिन्दू देवी देवताओं में सूरज देव, भूमि, नाग, बाघदेव आदि की पुजा होती है।


    कंवर जनजाति में विवाह संस्कार क्या क्या है?

    कंवर जनजाति (kanwar caste) में गुरावट (विनिमय), घर जमाई प्रथा, ढुकू (घुसपैठ), उढ़रिया (सहपालयन) चूड़ी पहनावा (पुनर्विवाह) आदि होती है


    Kanwar Caste में "सुक" का क्या मतलब होता है?

    कंवर जनजाति में"सुक"का मतलब वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष को "सुक" भरना के रूप में चावल, दाल, तेल, गुड़, हल्दी और कुछ नगदी रुपया दी जाती है।


    कंवर जनजाति में पैकरा का मतलब क्या है?

    कंवर जनजाति में "पैकरा" का मतलब हिंदी में "बच्चा" होता है। "कंवर जनजाति" का अभिप्रेत अर्थ होता है कि इस जनजाति के लोग किसी विशेष समय या आयोजन में किसी विशेष स्थिति में अपने बच्चों को पैकरा कह सकते हैं।


    1. कंवर जनजाति का जनजाति चिन्ह टोटम है।
    2. सतनाम धर्म के संस्थापक गहीरा गुरु थे जो कंवर जनजाति के है।
    3. कंवर जनजातियों मे 2011 के अनुसार साक्षरता 67% है, जिनमे पुरुषो में 79% और महिलायें 55.2% है।
    4. यह जनजाति मिले-जुले गांवों में रहते है, ये लोग अलग से टोला बनाकर भी रहते है जिसे कंवर टोला कहा जाता हैं।

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    **धन्यवाद**

    2 comments:

    1. लेख में कंवर जनजाति का बांधवगढ़ (मध्यप्रदेश)में ऐतिहासिक सत्ता का उल्लेख होना चाहिए जो नहीं है ।
      उल्लेख है की बांधवगढ़ की सत्ता बघेलो ने कंवर जनजाति के राजा नारायण कंवर से छलपूर्वक छीनी थी ।

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    2. कंवर जनजाति के उत्त्पति को और स्पष्ट कीजिए

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