इस पोस्ट मे मुड़िया/ मुरिया जनजाति(Muriya/ Mudiya Tribe Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।
Muriya/ Mudiya Tribe Overview | |
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जनजाति का नाम | मुड़िया/ मुरिया जनजाति |
उपजाति | राजा मुरिया, घोंटूल व झोरीया मुरिया |
मुड़िया/ मुरिया जनजाति के गोत्र | मुरिया जनजाति में मड़कामी, कुंजामी, कुड़यामी,सोढ़ी, बेद्दी, क्वाची, टेकामी, मंडावी, कश्चिम गोत्र पाई जाती है। |
निवास स्थान | छत्तीसगढ़ |
भाषा बोली | हल्बी एवं गोड़ी |
मुरिया जनजाति (Muriya Tribe)- मुरिया शब्द की व्युत्पत्ति 'मुर'अर्थात् मूल से मानी जाती है| इन्हें बस्तर का प्रचीनतम मूल निवासी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर, कोंडागाँव, नारायणपुर, में अधिक पाये जाते है। यह जशपुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, आदि जगहों में पाये जाते है मुरिया जनजाति में प्रोटो आस्ट्रेलोयड पाया जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य में मुरिया जनजाति अहिर भील, गोंड, बाघेल और खण्डैत जैसी अन्य जातियों के साथ मिलकर रहती है।
मुरिया जनजाति का इतिहास विशेष रूप से छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी समुदायों के इतिहास से जुड़ा हुआ है। यह जनजाति अपने ऐतिहासिक रूप से जंगलों और पहाड़ों क्षेत्रों में निवास करती थी और उनका जीवन उनके परंपरागत संस्कृति, धर्म, और आदिवासी शैली में व्याप्त था।
मुरिया जनजाति आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती क्षेत्रों में निवास करती है। यह बस्तर का मूल आदिवासी समुदाय है। और यह गोंडी समुदाय का हिस्सा है। यह आरक्षित वन के भीतर स्थित एक मरुद्यान है और यहाँ मूरियाओं के मूल जनजातियों द्वारा "गुट्टी कोया" कहा जाता है।
मुरिया जनजाति की भाषा ( Muriya Tribe Launguage)
मुरिया जनजाति की भाषा का नाम "मुरिया भाषा" है, जिसे "मुडिया" भी कहा जाता है। यह भाषा उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं को संवाद करने के लिए प्रयुक्त होती है। अन्य क्षेत्रिए भाषा हल्बी एवं गोड़ी है। मुरिया भाषा के विशेष विशेषताओं में उनकी संस्कृति, परंपराएँ, और जीवनशैली का प्रतिबिम्ब होता है। यह भाषा उनकी समुदाय के लोगों के बीच संचार का माध्यम होती है और उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धाराओं को सांजोने में मदद करती है। मुरिया भाषा को लेकर भाषा और साहित्य विशेषज्ञ अभ्यास कर रहे हैं ताकि इसे समृद्ध किया जा सके और इस समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर को संजीवनी मिल सके।
मुरिया जनजाति का खान-पान (Foods of Muriya Janjati):-
मुरिया जनजाति का खान-पान उनकी स्थानीय सांस्कृतिक और जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनका भोजन मुख्य रूप से स्थानीय उत्पादों और प्राकृतिक सामग्रियों पर आधारित होता है। इसका एक बड़ा हिस्सा शिकार और संग्रहित खाद्य पदार्थों पर भी निर्भर करता है। इसमें गेहूँ, बाजरा, ज्वार आदि अनाजों को पीसकर बनाया जाता है। यह एक प्रकार का रोटी होता है जो मुख्य भोजन के साथ परोसा जाता है। मुरिया लोग अक्सर गाय और बकरी के दूध का उपयोग करते हैं, जो उनके खान-पान का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इस जनजाति का आर्थिक स्थिति बहुत ही सामान्य जीवन होता है। लोग पूर्णरूप से प्रकृति पर निर्भर रहते है। इस जाती के लोग जंगलों से बहुत कुछ प्राप्त करते है। जैसे कंदमूल पेड़ों से महुवा, इमली, तेंदू साल के पत्ते, चार आदि कभी कभी शिकार भी करते है जैसे बरहा, चिड़िया, खरगोश, चूहा आदि नालो व नदी तालाबों से मछ्ली आदि पकड़ते है। यह काम पुरुष व महिला दोनों करते है।
मुरिया जनजातियो की कृषि ( Agriculture of Muriya Janjati):-
मुरिया जनजाति स्थायी खेती के साथ-साथ शिफ्टिंग खेती का भी अभ्यास करती है। वे धान, मक्का, और विभिन्न नकदी फसलों की खेती करते हैं, और मिश्रित खेती जिसमें फल, सब्जियाँ और अनाज शामिल होते हैं, का भी उपयोग करते हैं। मुरिया जनजाति के लोग कृषि पर निर्भर रहते है। ये लोग खेती के लिए मानसून वर्षा पर निर्भर रहते है। साल भर खाने के लिए मड़वा, हिरवा, उड़द दाल व मौसमी साग भाजी आदि लगाई जाती है।
इस जनजाति के लोग खेती के साथ साथ पशुपालन भी करते है जैसे: बैल, बकरी, मुर्गी, भैस आदि पालते है। भैसों आ बैलों का उपयोग खेतों में करते है। मुर्गियां, बकरी व सुअर आदि का आर्थिक और सामाजिक कार्यों में उपयोग होता है।
1.प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग:
मुरिया जनजाति अपने पूर्वजों से मिली हुई पैतृक ‘डेडा’ (Deda) पद्धति का उपयोग कर रहे हैं। इस पद्धति के तहत वे खाद्य फसलों के बीजों को संरक्षित करने के लिए बीजों को पत्तियों के भीतर संग्रहित करते हैं। इसके बाद बीजों को पत्थरों जैसा दिखने के लिए कसकर पैक कर दिया जाता है। यह तकनीक मूंग, लाल चना, काला चना और बीन्स जैसी दालों को संरक्षित करने के लिए विशेष रूप से प्रभावी है।
डेडा विधि यह सुनिश्चित करती है कि बीज कीटों और कीड़ों से सुरक्षित रहें, जिससे वे पाँच साल तक खेती के लिए व्यवहार्य रह सकें।
2. पहली-पीढ़ी के हक:
मुरिया समुदाय अपनी सामूहिकता को प्राथमिकता देते हैं।
उन्हें अपने कुलदेवता पशु को खाने की अनुमति नहीं है, और यदि कोई मर जाता है तो उसे शोक करना चाहिए।
3.शिक्षा:
मुरिया जनजातियाँ निर्वाह खेती में संलग्न हैं। वे छोटे पैमाने पर मिश्रित फसलों की खेती करते हैं, जैसे कि मक्का और दालें।
मुरिया जनजाति का महत्वपूर्ण त्यौहार (Festivals of Muriya Janjati):-
मुरिया जनजाति का प्रमुख त्यौहार कोला पंडुम, काकसार, बीजपंडुम, कद्टा पंडुम तथा कोरी पदुम आदि त्यौहार मनाते हैं। इसके अलावा उरड़खानी(पहला फसल) नवाखानी, चाड़जात्रा, और सेशा त्योहार भी मनाते है।
मुरिया जनजाति के लोगों के पास कई महत्वपूर्ण त्यौहार हैं, जो उनकी समाजिक और सांस्कृतिक जीवनशैली का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनमें से कुछ प्रमुख त्यौहार निम्नलिखित हैं:
हरिया भाई पर्व: यह पर्व साल के पहले महीने में मनाया जाता है और इसे खुशियों का पर्व माना जाता है। इसमें विभिन्न धार्मिक और सामाजिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
नाग पंचमी: इस त्यौहार में नागदेवता की पूजा की जाती है। यह एक प्रमुख धार्मिक त्यौहार है जिसमें भविष्य शुभ करने के लिए नागदेवता की कृपा के लिए प्रार्थना की जाती है।
मोहोणी पर्व: इस त्यौहार में मुरिया जनजाति की महिलाएं प्रेम और सौंदर्य के प्रतीक रूप में आत्मा को सजाती हैं।
फागुन भैंचन पर्व: यह पर्व फागुन महीने में मनाया जाता है और इसे खुशियों और उत्साह का संकेत माना जाता है।
ये त्यौहार समुदाय के सामाजिक और धार्मिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और लोग इन्हें धूमधाम से मनाते हैं।
मुरिया जनजाति के लोकगीत एवं लोकनृत्य (Folk Song and Dance of Muriya Janjati):-
मुरिया जनजाति के लोकगीत मे रैला लोकगीत एक प्रमुख मुरिया लोकगीत है|
मुरिया जनजाति के प्रमुख लोक नृत्यों में पूसकलंगा,'छेरता, दीवाली, चैत डांडर, मांदरी आदि है। इसके अलावा ककसार, गेंड़ी, माँदरी, हुलकीपाटा एवं एबलतोर प्रमुख नृत्य है जिसे मुरिया नृत्य के नाम से जाना जाता है| सरहुल नृत्य यह भी मुरिया जनजाति का प्रसिद्ध मुरिया नृत्य है जो कि चैत्र मास की पुर्णिमा रात को यह लोकनृत्य की जाती है। यह एक प्रकार की प्रकृति पुजा का आदिम स्वरूप होता है।
मुरिया जनजातियों के देवी-देवता (Lord's of Muriya Tribe):-
मुरिया जनजातियों के देवी-देवता लिंगोपेन, महादेव, बूढ़ा देव, ठाकुर देव आदि देवताओं को मानते है।
छत्तीसगढ़ के मुरिया जनजाति के लोग अपने धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वासों में कई देवी-देवताओं को मानते हैं। यहाँ कुछ मुख्य देवी-देवताओं का उल्लेख है:
बादी देव - यह एक प्रमुख देवी है, जिन्हें मुरिया जनजाति का प्रमुख देव कहा जाता है।
बुढ़ा देव - इन्हें खुशी और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
घसिया देव - यह देवी सृष्टि की संरक्षा के लिए पूजा जाता है।
महादेव - इन्हें शिव जी के रूप में पूजा जाता है, जो संसार के निर्माता के रूप में माना जाता है।
यह उल्लिखित देवी-देवताओं के अलावा भी कई और छोटे-बड़े देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जो उनके स्थानीय आदिवासी धर्म के आधार पर होते हैं।
मुरिया जनजातियों में विवाह संस्कार (Wedding Ceremony in Muriya Janjati):-
मुरिया जनजाति में ममेरे-फूफ़ेरे विवाह, अंतर्विवाही व गोत्र बहिर्विवाही होता है। चल विवाह, धरमार विवाह, मंद विवाह, घर जमाई, चूड़ी विवाह, व ठेगवा विवाह आदि प्रचलित है।
महत्वपूर्ण बिन्दु (Important Point about Muriya Tribe):-
- घोंटुल यह मुरिया जनजाति के लोगों का युवागृह होता है। जहां सामाजिक में जीवन युवक युवकतियां अपना जीवन साथी का चुनाव करते है।
- परगना मांझी यह मुड़िया जनजाति का मुखिया होता है जो की मांझी कहलाता है। बस्तर दशहरा के अंत में एक दरबार लगता है और मांझी मुखिया गाँव के समस्याओं का समाधान करता है।
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