भतरा जनजाति | Bhatra Janjati in Hindi

इस पोस्ट मे भतरा जनजाति (Bhatra Tribes Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।


Bhatra Tribes Overview
जनजाति का नाम भतरा जनजाति
उपजाति पीत भतरा, अमनीत भतरा, अमनैत भतरा, जाड़ा भतरा, शान भतरा
गोत्र कश्यप, नाग, बघेल आदि भतरा जनजाति के प्रमुख गोत्र है।
निवास स्थान ओडिशा और महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ में बस्तर, कोंडगाव, सुकमा
भाषा बोली ओड़िया और भतरी बोली
कुल जनसंख्या जनगणना 2011 के अनुसार राज्य में लगभग 213900 जनसंख्या है।

भतरा जनजाति (BhatraTribes)-

भतरा जनजाति मुख्य रूप से महाराष्ट्र, ओडिशा प्रांत में अधिकता से पायी जाती है एवं छत्तीसगढ़ में बस्तर, कोंडगाव, सुकमा आदि जिलों में पाये जाते है। जनगणना 2011 के अनुसार राज्य में लगभग 213900 इनकी जनसंख्या है। इनकी भाषा व बोली ओड़िया और भतरी बोली है। एवं प्रांतीय बोली, बोली जाती है।


भतरा जनजाति का इतिहास (Bhatra Tribes History):-

छत्तीसगढ़ में भतरा जनजाति मुख्यतः बस्तर संभाग में निवास करते है। लोगों का यह मत है कि यह जनजाति बस्तर के ककतीय वंश के राजा श्री पुरोषोत्तम देव द्वारा जग्गनाथ यात्रा के दौरान वापसी के समय उड़ीसा से कुछ भद्र लोगों के साथ जनेऊ पहनाकर तथा भद्र नामक संबोधित करके अपने साथ लेकर आए थे, उन्ही के वंशज आज भतरा के रूप में जाने जाते है। दंतकथाओं द्वारा यह प्रचलित है कि जब त्रेयता युग में भगवान श्री रामचन्द्र जी वनवास हुआ था तब, राजा भरत द्वारा कुछ लोगों को जिन्हे भतरी कहा जाता था, उन्हे उनके खोज व सेवा के लिए भेजा गया था वही कालांतर में (भतरी या भतरा के नाम से जाना गया) जगलों में निवास करने लगे। उन्ही के वंशज आज भतरी या भतरा के नाम से जाने जाते है।


इनके पूर्वज बस्तर के राजमहल में पहरेदारी तथा घरेलू काम-काज किया करते थे। वहाँ के राजा इन पर बहुत विश्वास करते थे। राजमहल में इन्हे भतरी कहा जाता था।बस्तर व दंडकारणय क्षेत्र इनका आदिकाल से ही निवास स्थान माना जाता है।


भतरा भाषा (Bhatra Tribes Launguage)

ओड़िया और भतरी बोली जाती है|


भतरा जनजातियों का खान-पान (Bhatra Tribes Food):-

भतरा जनजाति के लोगों का खाना चावल(भात) होता है, ये लोग अपना घर स्वयं तैयार करते है इन के घर का छत्त खपरैल व घास फूस का बना होता है। विशेष: भतरा जनजाति के लोग बीमारी के इलाज के लिए, जंगल से कुछ ख़ास औषधि पेड़, पौधों के छाल व पत्तों के रस तथा विशेष कीड़ों का उपयोग करके जैसे: मलेरिया के उपचार के लिए पेड़ के डालियों में लगे पीले (सुनहरे) रंग की चींटियाँ जिनको मरीज़ शरीर पर झाड़ दिया जाता है। वे चींटियाँ उन्हे काटती है जिससे मरीज़ स्वस्थ हो जाता है। ये लोग चींटियों को भून कर या तल कर उसका चटनी बना कर खाते है। उनका कहना है कि यह चटनी उन्हे सर्दी जुकाम व सिर दर्द जैसी परेशानियों से बचाती है।


भतरा जनजातियो की कृषि (Bhatra Tribes Agriculture):-

भतरा जनजाति चूंकि ये लोग जंगली इलाकों में निवास करते है इसलिए वह खेती व शिकार पर निर्भर करते है। छत्तीसगढ़ में निवास करने वाले भतरा कृषि करने के लिए मुख्य रूप से वर्षा के जल पर निर्भर रहते है। ये लोग कोदो कुटकी, धान, उड़द, मूंग आदि कि खेती करते है एवं वर्षा का अभाव होने पर वे शिकार और मछ्ली भी पकड़ते है। ये पशुपालन भी करते है। एवं वनोपज से संग्रह करके जैसे तेंदू, लाख, कंदमूल आदि ला कर निकट के बाजार में बेच देते है और पैसा कमाते है जिससे अपना जीविका चला सके।


भतरा जनजातियों का महत्वपूर्ण त्यौहार (Bhatra Tribes Festivals):-

भतरा जनजाति के लोग अम्मूस तिहार, अंगुस, नवाखनी, दशहरा, दियारी, छेरछेरा (दान का त्योहार) आदि त्योहार मानते है।


भतरा लोकगीत एवं लोकनृत्य (Bhatra Tribes Folk Song and Dance):-

लोकगीतों में चैव परब, कोटनी लाठिया भाजी, झालियाना एवं भतरा नाट इन का प्रसिद्ध लोक नाट्य है।

 लोकनृत्य- डंडारी


भतरा जनजाति के देवी-देवता (Lord of Bhatra Tribes):-

भतरा जनजाति के लोगों के पूर्वज बहुत से देवी देवताओं को मानते थे जिसमें देवी लमानी माता, लंगूर माता, परदेशीन माता, गंगदी माता, कंकाली माता, शीतला माता, बंजारी माता, आदि देवियाँ थी। वे सात बहिनी देवियों का विशेष पुजा करते थे। जिनमें से तेलग्नी, राहू, मीर्ची, आदसुंदरी, बांडसुंदरी, गरब लूल्ली पेट पुल्ली और बंजारी माता। बंजारी माता पशुओं को बचाने के लिए पूजनीय मानी जाती थी अन्य देवीयां ग्राम देवी थी। देवताओं में भैरम देव, पडागड़ा भैरम, उलट भैरम, पुलट भैरम, बूढ़ा भैरम, नागा भैरम, जेना भैरम आदि देव इन सभी देव को प्रसन्न करने के लिए अदपुआ देते थे। इन जनजातियो के पुजा में सनातनीय पुजा प्रथा साफ दिखाई देती है। इस जनजाति के लोगों के घरों में एक कोठरी होती है जहां अंदर में देवी देवताओं को रखते है और उनकी पूजा करते है। भतरा जनजाति के लोग जादू टोना में विश्वास रखते है। जादू टोना करने वाले लोगों को पुरुष को पंगनहा व महिला को पंगनिहीन कहते है। तथा बीमारियों का उपचार एवं जादू टोना को दूर करने के का काम सिरहा से कराते है।


भतरा जनजातियों मे विवाह संस्कार (Wedding Ceremony in Bhatra Tribes):-

भतरा जनजातियो का विवाह छेत्रीय रीति रिवाजों, बली पूजन से होते है। कुछ लोग बलि को न मानकर सामान्य विवाह भी करते है इन जनजातियों में दाड़ की भी प्रथा होती है, जिसमें यदि जाति की महिला यदि दूसरे जाति में जाए तो उन्हे दंड के रूप में भोज कराना पड़ता है।


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