खैरवार जनजाति | Khairwar Janjati in Hindi

इस पोस्ट मे खैरवार जनजाति (Khairwar Tribes Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।


Khairwar janjati Overview
जनजाति का नाम खैरवार जनजाति
निवास स्थान छत्तीसगढ़ (दक्षिण बस्तर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, नारायणपुर, रायगढ़, सुराजपुर) मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, ओडिशा, आंध्र प्रदेश
खैरवार जनजाति की उपजाति सूर्यवंशी, दौलतवंशी, कंवरवंशी(मछ्कोड़ा), परवंधी तथा खैरचुरा
खैरवार जनजाति का गोत्र नाग, धान, नून, कछुआ, बहेरा, बेल, डेंकी तथा काँसी
खैरवार जनजाति की भाषा एवं बोली खैरवारी भाषा, ड्रविड़-मुण्डा भाषा

खैरवार जनजाति (Khairwar Janjati)

खैरवार जनजाति भारत के विभिन्न राज्यों में बसे हुए हैं। यह समुदाय अधिकांशतः छत्तीसगढ़ राज्य मे बसे हैं। खैरवार जनजाति छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों जैसे कि दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा, कोंडागांव, नारायणपुर, रायगढ़, सुराजपुर आदि के निवासी हैं। इसके अलावा, खैरवार जनजाति का बसेरा अन्य राज्यों जैसे कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ के पड़ोली और बासोदी क्षेत्र आदि में भी देखा जा सकता है। खैरवार जनजाति अपने समुदाय की समृद्धि, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को प्रसारित करने एवं अपनी संस्कृति और परंपरागत विकास को बनाए रखने के लिए विभिन्न समुदाय के साथ निवास करते हैं। जीवन-यापन करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों जैसे- कृषि, उद्योग, खनन और मजदूरी आदि कार्यों को व्यवसाय एवं आय के रूप में चुनते हैं।


खैरवार जनजाति का इतिहास (History of Khairwar tribe):-

यह भारत के मध्य और पूर्वी भागों में निवास करने वाली एक प्रमुख आदिवासी जनजाति है। खैरवार जनजाति का इतिहास चंदेल राजवंश के एक शाखा से जुड़ी मानी जाती है। माना जाता है कि इनकी जनजाति के सदस्य प्राचीन काल से ही भारतीय उपमहाद्वीप में निवास करते आ रहे हैं। खैरवार जाति के इतिहास का उल्लेख वेदों और पुराणों में भी स्पष्ट रूप से मिलता है। इनकी जनजाति आदित्यवंशी राजा चंदेल जो एक राजपूत राजवंशज थे, उनके वंशज माने जाते हैं। चंदेल राजा 9वी शताब्दी मे मध्यकालीन भारत जिसे आज उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के नाम से जाना जाता है, के शासक थे।


खैरवार जनजाति के लोग अपनी उत्पत्ति सूर्यवंशी के महाराजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व से मनाते है। अंग्रेज़ विद्वान कालोनिल डाल्टन एवं रसेल के अनुसार इनकी उत्पत्ति गोड़ चेरो (कंवर) और संथाल जो खैर वृक्ष से कत्था बनाने का कार्य करते थे, इनसे मानी गई है। खैर वृक्ष से कत्था बनाने के कारण इन्हे खैरवार कहा गया।


एक मान्यता के अनुसार खैरवार जनजाति कि उत्पत्ति भृगुवंशी ब्राह्मणों के वंश से मानी जाती है, जिन्होंने अपने विशेष व्यवसाय, संस्कृति, और सामाजिक अभिवृद्धि के दम पर प्रसिद्ध होने का प्रयास किया। खैरवार समुदाय के लोग मुख्य रूप से गांवों में निवास करते हैं और खेती, पशुपालन, और वन्यजीवन पर आश्रित थे। इनका इतिहास विशेष रूप से उत्तर प्रदेश राज्य के कुछ इलाकों में पाया जाता है, जैसे कि मेरठ, गाजियाबाद, बाग्पत, बुलंदशहर, आदि। खैरवार जनजाति के लोग अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को बढ़ावा देते हैं और धार्मिक तथा सामाजिक कार्यों का अनुसरण करते हैं।


खैरवार जनजाति की भाषा (Language of khairwar tribes)

खैरवार जनजाति की भाषा और बोली खैरवारी भाषा है। यह भाषा खैरवार जनजाति के लोगों के बीच संवाद के लिए प्रयोग की जाती है और इसे उनकी मातृभाषा माना जाता है। खैरवारी भाषा ड्रविड़-मुण्डा भाषा परिवार के भाग में आती है और यह खैरवार जनजाति के लोगों के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। यह भाषा खैरवार समुदाय के सभी सदस्यों के बीच संवाद के लिए उपयुक्त है और इसके माध्यम से वे अपने विचारों, भावनाओं, और विशेष ज्ञान को व्यक्त करते हैं।


खैरवारी भाषा के विभिन्न भाग और उच्चारण मिल सकते हैं, क्योंकि यह भाषा खैरवार जनजाति के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच भाषा का रूप भावीत हो सकता है। हालांकि, यह भाषा उन्हें उनके समाज, संस्कृति, और संवाद में संबद्धता देती है और उनकी सांस्कृतिक पहचान का एक अहम हिस्सा है।


खैरवार जनजाति का वस्त्र एवं आभूषण (Cloths and Ornaments of the Khairwar Janjati):-

खैरवार जनजाति के वस्त्र और आभूषण में इनकी संस्कृति, परंपरा, और स्थानीय पहचान झलकती हैं। खैरवार जनजाति अपने वस्त्र और आभूषण को अपने समुदाय की संस्कृतिक, सामाजिक अवसरों एवं धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार चुनते हैं और उन्हें अपने समृद्ध संस्कृति का प्रतीक मानते हैं।


खैरवार जनजाति के पुरुषों मे धोती-कुर्ता और ऊँचे जूते पहनने का प्रचलन हैं। इनकी जंजातियों के पुरुष धोती को अपनी पारंपरिक पहनावे का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं और वे इसे विभिन्न रंगों और डिज़ाइन के साथ पहनते हैं। महिलाओं के वस्त्र में साड़ी, लहंगा-चोली और सलवार-कुर्ता शामिल हैं। खैरवार जनजाति की महिलाएं रंग-बिरंगे और सुंदर साड़ियों को विशेष अवसरों और त्योहारों में पहनती हैं जो उनके सौंदर्यता को निखारते हैं।


खैरवार जनजाति के महिलाओं मे हाथपूल, अंगूठी, और हाथी के दांत से बने आभूषण अधिक प्रचलित है। इसके अलावा खान धातु (पीतल), सिल्वर (चाँदी), सोने (गोल्ड) से बने आभूषण भी प्रचलित हैं। वे इन धातुओं से बने हार, कड़ा, चूड़ी, नथ, मांग टीका, बाजूबंद आदि का धरण करते हैं। आभूषणों को किसी विशेष कार्यक्रम या अवसर जैसे सामाजिक कार्यक्रम या त्योहारों में पहने जाते हैं।


खैरवार जनजातियों की संस्कृति (Culture of Khairwar Janjati):-

खैरवार जनजाति की संस्कृति का भारतीय आदिवासी संस्कृति मे एक प्रमुख स्थान है। इनकी संस्कृति रंगीनता एवं समृद्धि से भरी है। खैरवार जनजाति को उनके इतिहास, परंपरागत समृद्धि और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है। यहां कुछ मुख्य विशेषताएं हैं जो खैरवार जनजाति की संस्कृति को विशेष बनाती हैं:


सांस्कृतिक आचरण: खैरवार जनजाति के लोग अपनी परंपरागत संस्कृति को महत्व देते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों, और रुवानों को धूमधाम से मनाते हैं। इन्हें भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठता का एहसास होता है और वे अपने संस्कृति को संजोने और संरक्षित रखने के लिए प्रयास करते हैं।


सांस्कृतिक कला और शैली: खैरवार जनजाति के लोग अपनी सांस्कृतिक कला और शैली को गर्व से प्रदर्शित करते हैं। उन्हें विशेष रूप से गीत-संगीत, नृत्य, और लोककथाएं पसंद हैं, जिन्हें वे सामाजिक अवसरों पर प्रदर्शित करते हैं।


भाषा और संगठन: खैरवार जनजाति की अपनी भाषा "खैरवारी" है, जो उनके समुदाय के सदस्यों के बीच में बोली जाती है। यह भाषा उनकी संस्कृति और भाषा की पहचान के रूप में महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, खैरवार समुदाय के लोग संगठित रहते हैं और समाज में एक-दूसरे की मदद और सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं।


धार्मिकता: खैरवार जनजाति के लोग अपने प्राचीन धर्म और अनुष्ठानों को महत्व देते हैं। भूमिदेवी, वैष्णवी माता, शिवजी, और सूर्यदेवता जैसे विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा और आराधना को वे विशेष महत्व देते हैं।


परंपरागत वस्त्र पहनाव: खैरवार जनजाति के लोग अपने परंपरागत वस्त्र पहनने में रुचि रखते हैं। उनके परंपरागत पोशाकें विशेषतः त्योहारों और विशेष अवसरों पर पहनी जाती हैं, जो उनकी संस्कृति को और भी समृद्ध करती हैं। खैरवार जनजाति की संस्कृति उनके समुदाय के सदस्यों के बीच गहरा जुड़ाव और एकता का प्रतीक है। ये संस्कृति उन्हें उनके इतिहास, परंपरागत समृद्धि, और सभ्यता का अभिवादन करती है।


खैरवार जनजाति की संस्कृति में कई महत्वपूर्ण कलाएं हैं, जो उनके समुदाय की समृद्धि और भविष्य को संवारने में मदद करती हैं। इन महत्वपूर्ण कलाओं में से कुछ प्रमुख कलाएं निम्नलिखित हैं:


गीत-संगीत: खैरवार जनजाति के लोग गीत-संगीत में माहिर होते हैं। उन्हें अपनी संस्कृति के विभिन्न अवसरों पर गाने और संगीत बजाने का शौक होता है। वे अपने लोकगीतों के माध्यम से अपने इतिहास, परंपरागतता, और दैनिक जीवन के विषयों पर गाना गाते हैं।


नृत्य: खैरवार जनजाति के लोग भी नृत्य के क्षेत्र में प्रतिभाशाली होते हैं। उन्हें अपने विभिन्न त्योहारों, समारोहों, और समाजी अवसरों पर नृत्य करने का शौक होता है। इन नृत्यों में धार्मिक और सांस्कृतिक संदेश होते हैं और वे समुदाय को एक साथ लाने में मदद करते हैं।


लोककथाएं: खैरवार जनजाति के लोग लोककथाएं भी सुनाते हैं और प्रदर्शित करते हैं। इन लोककथाओं में भगवानी, भूत-प्रेत, युद्ध, और सामाजिक संदेश होते हैं, जो समुदाय के लोगों को विभिन्न सवालों और मुद्दों का सामना करने में मदद करते हैं।


भूमि चित्रण: खैरवार जनजाति के लोगों के बीच भूमि चित्रण का अभिप्रेत्य है। वे अपनी परंपरागत कला के माध्यम से अपने इतिहास, समाजिक घटनाओं, और प्राकृतिक सुंदरता को चित्रित करते हैं। ये महत्वपूर्ण कलाएं खैरवार जनजाति के समृद्ध और संस्कृतिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और उनके समुदाय को समृद्ध, संवादशील, और समृद्ध करती हैं। खैरवार जनजाति की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:


संबंध सामाजिक संरचना से: खैरवार जनजाति के सदस्य गांवों में निवास करते हैं और समुदाय के एक-दूसरे के साथ मजबूत संबंध रखते हैं। वे परंपरागत रूप से समुदाय के माध्यम से संबंधों को महत्व देते हैं और एक दूसरे की मदद और सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं।


समृद्धि की इच्छा: खैरवार जनजाति के लोग समृद्धि और सशक्तिकरण की इच्छा रखते हैं। वे शिक्षा, औद्योगिक विकास, और अधिक समाजी सुविधाओं के लिए प्रयास करते हैं।


सांस्कृतिक धरोहर: खैरवार समुदाय के लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को महत्व देते हैं। उनके पास विशेष गीत-संगीत, नृत्य, और लोककथाएं हैं, जिन्हें वे समाजी अवसरों पर दिखाते हैं।


खेती और पशुपालन: खैरवार जनजाति के लोग मुख्य रूप से खेती और पशुपालन पर आधारित रहते हैं। वे खेती और पशुपालन से अपनी आर्थिक उन्नति के लिए प्रयास करते हैं।


सांस्कृतिक अधिकार: खैरवार जनजाति के लोग अपनी सांस्कृतिक अधिकारों को सुरक्षित रखने और समाज में सम्मान के साथ जीने की इच्छा रखते हैं। वे अपने समुदाय की विकास और समृद्धि के लिए संघर्ष करते हैं। खैरवार जनजाति के लोग अपनी समृद्धि, सांस्कृतिक धरोहर, और सामाजिक संबंधों को महत्व देते हैं और अपने समुदाय के विकास में सक्रिय भागीदारी करते हैं।


खैरवार जनजातियो की कृषि (Agriculture of Khairwar tribes):-

खैरवार janjati के सदस्य मुख्य रूप से कृषि पर आधारित रहते हैं और खेती उनके लिए मुख्य आर्थिक गतिविधि है। वे अपने खेतों में विभिन्न प्रकार के फसलों की उगाई जाती हैं, जो उन्हें आय की स्रोत प्रदान करती हैं और उनके परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।


खैरवार janjati की प्रमुख krishi फसलें निम्नलिखित हैं:

धान (चावल): धान खैरवार जनजाति के लोगों के लिए मुख्य फसल है। यह उनके प्रमुख भोजन का स्रोत है और उनके क्षेत्र में उगाई जाने वाली मुख्य फसलों में से एक है।


गेहूं (गंदुम): गेहूं भी खैरवार जनजाति के लोगों के लिए महत्वपूर्ण फसल है। यह रोटी का एक प्रमुख स्रोत है और उनके क्षेत्र में उगाई जाने वाली मुख्य फसलों में से एक है।


दलहन (उड़द दाल): दलहन भी खैरवार जनजाति के लोगों के लिए महत्वपूर्ण फसल है। यह दाल का मुख्य स्रोत है और उनके क्षेत्र में उगाई जाने वाली मुख्य फसलों में से एक है।


भिंडी (लेडीज फिंगर): भिंडी खैरवार जनजाति के लोगों की महिलाओं द्वारा उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है। यह उनके आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उन्हें आय का अवसर प्रदान करती है।


अनाज (धान्य): अनाज भी खैरवार जनजाति के लोगों के लिए महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। इसमें मक्का, जौ, बाजरा और चना शामिल होते हैं, जो उनके भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये कृषि फसलें खैरवार जनजाति के लोगों की आर्थिक सुविधा और आहार सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, और उन्हें खेती में अधिक समृद्धि प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती हैं।


खैरवार जनजाति का जीवन खेती और पशुपालन पर आधारित होता है। इनकी प्रमुख आय का स्रोत खेती होता है, जिसमें मुख्य रूप से खाद्य अनाज और फसलों की उत्पादन शामिल होता है। खैरवार लोग भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में अलग-अलग कृषि व्यवसाय प्रदर्शित करते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य में वन्य और संवर्गीय जलवायु की वजह से खेती उनके लिए मुख्य रूप से महत्वपूर्ण है। खैरवार लोग खेती में विभिन्न धान्य जैसे धान, गहुँ, जव, मक्का, और राजमह, इत्यादि की उत्पादन करते हैं। अपने फसलों को खेती करने के लिए खैरवार लोग विभिन्न जलवायु, भूमि, और ज़मीन के अनुसार अलग-अलग तरीकों का उपयोग करते हैं।


खैरवार जनजाति के लोग खेती के लिए लघु और स्थानीय उपकरणों का उपयोग करते हैं और अपनी खेती में परंपरागत विधियों का पालन करते हैं। उन्हें अपने कृषि जलवायु के अनुसार विभिन्न फसलें उगानी पड़ती हैं, जिससे उन्हें व्यापारिक और आर्थिक रूप से लाभ मिलता है। खैरवार लोग अपने पशुपालन व्यवसाय को भी बहुत महत्व देते हैं। वे मुख्य रूप से गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी और बकरी जैसे पशुओं को पालते हैं। पशुपालन उनके लिए दूध, मांस, और बैल जैसे उत्पादों का मुख्य स्रोत है, जो उनके जीवनयापन के लिए महत्वपूर्ण है। खैरवार जनजाति की आर्थिक और सामाजिक जीवनशैली में खेती और पशुपालन व्यवसाय अहम भूमिका निभाते हैं और इससे उन्हें अपने परंपरागत संस्कृति और आयुर्वृत्ति से जुड़े रहने का मौका मिलता है।


खैरवार जनजाति का प्रमुख त्यौहार (Festivals in Khairwar tribe):-

होली: होली खैरवार जनजाति के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे खुशियों और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन, वे रंग-बिरंगे रंगों का इस्तेमाल करके खिलवाड़ करते हैं, गाने गाते हैं और मिठाईयों का सेवन करते हैं।


दीपावली: दीपावली खैरवार समुदाय के लोगों के बीच बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इसे खूबसूरत दीएं और पटाखों के आगमन के साथ मनाया जाता है। लोग एक-दूसरे के घरों को दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं और साथ में मिठाई खाते हैं।


नवरात्रि: नवरात्रि भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखने वाला त्योहार है, जिसे खैरवार समुदाय भी बड़े उत्साह से मनाता है। इसके दौरान, वे भगवानी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और आराधना करते हैं। इस अवसर पर, सामाजिक समारोह और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।


छठ पर्व:छठ पर्व खैरवार समुदाय के लोगों के लिए एक विशेष त्योहार है, जिसे सूर्य देवता की पूजा के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर, वे जली बिंदिया व्रत करते हैं और सूर्यास्त और सूर्योदय के समय नदी या तालाब के किनारे सूर्य की पूजा करते हैं।


ये त्योहार खैरवार जनजाति के लोगों के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक अवसर हैं, जिन्हें वे बड़े उत्साह और भक्ति से मनाते हैं।


खैरवार जनजाति के प्रमुख लोकगीत एवं लोकनृत्य (Major folk songs and folk dances of Khairwar tribe):-

लोकगीत- खैरवार janjati के प्रमुख लोक git उनके संस्कृति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को बयां करने वाले होते हैं। इन लोक गीतों में उनके जीवन, प्राकृतिक सुंदरता, समाजिक अवसरों, और धार्मिक विश्वासों पर गाने गाए जाते हैं। यहां कुछ प्रमुख खैरवार जनजाति के लोक गीतों का उदाहरण दिया गया है:


बैरनी चंद: यह एक प्रसिद्ध खैरवार जनजाति का लोक गीत है, जो उनके समुदाय में पारंपरिक रूप से गाया जाता है। इस गीत में विभिन्न ताल में सुंदर सुरिली आवाज में खैरवार जनजाति की धरोहर और संस्कृति का प्रशंसा किया जाता है।


भजन गीत: खैरवार जनजाति के लोग अपने धार्मिक अनुष्ठानों में भजन गाने का भी शौक रखते हैं। इन भजनों में वे अपने देवी-देवताओं और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करते हैं और समाज के सभी सदस्यों को धार्मिक उत्साह में लाते हैं।


बोलचाल गीत: खैरवार जनजाति के लोग समाज में अपने विभिन्न संबंधों, समस्याओं, और दैनिक जीवन के विषयों पर बोलचाल गीत गाते हैं। इन गीतों में वे अपने जीवन के सामाजिक मुद्दों को व्यक्त करते हैं और एक-दूसरे के साथ सम्बन्धों को मजबूत करते हैं।


आधुनिक लोक गीत: खैरवार जनजाति के लोग आधुनिक लोक गीतों के भी दीवाने होते हैं। ये गीत आधुनिक संस्कृति, तकनीकी प्रगति, और जीवन के मुद्दों को व्यक्त करते हैं और एक ताज़ा रूप से खैरवार जनजाति के लोगों के बीच पसंद किए जाते हैं।


ये प्रमुख लोक गीत खैरवार जनजाति के समृद्ध संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहर को बयां करने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं और इन्हें उनके समाजी अवसरों और त्योहारों में आनंद से गाया और सुना जाता हैं।


खैरवार जनजाति के समाज में लोकगीतों का अपना एक विशेष स्थान है। ये लोकगीत समुदाय की संस्कृति, ऐतिहासिक घटनाओं, प्राकृतिक सौंदर्य, और सामाजिक जीवन के विविध पहलुओं को दर्शाते हैं। खैरवार जनजाति के लोकगीत बोलचाल और सामुदायिक जीवन को बढ़ावा देते हैं और समुदाय की आनंददायक समयबद्धता को साझा करते हैं। इन्हें गाने का मौन उत्साह और रसिकता से भरा जा सकता है।


कुछ प्रमुख खैरवार लोकगीतों के उदाहरण निम्नलिखित हैं:

"बिदाई गीत": यह गीत विवाह से पहले दुल्हन को उसके मायके से विदाई के समय गाया जाता है। इस गीत में परिवार के सदस्यों के भावों का वर्णन होता है और विदाई के दुख-दर्द को अनुभव किया जाता है।


"फगवा गीत": यह गीत होली के खास अवसर पर गाया जाता है। इसमें रंगों की खेलती बातों, प्रेम के रस का वर्णन, और समुदाय के सदस्यों के मिलने-जुलने का आनंद दिखाया जाता है।


"भोजपुरी गीत": ये गाने खैरवार जनजाति के विभिन्न परंपरागत कार्यक्रमों, उत्सवों, और शादी-विवाह जैसे समारोहों में गाए जाते हैं। इनमें स्थानीय रंग और संस्कृति के विषयों पर ध्यान केंद्रित होता है।


"धारमेश्वर का भजन":धर्मेश्वर महादेव के भजन खैरवार जनजाति के सदस्यों द्वारा ध्यान और भक्ति के साथ गाये जाते हैं। इनमें शिव भगवान की महिमा, उनके गुण और धरोहर का गान किया जाता है।


खैरवार जनजाति के लोकगीत उनके समाज के जीवन के मूल्यों, परंपराओं, और रंगीनता को प्रकट करते हैं। इन्हें गाने से समुदाय के लोग अपने संबंधों को मजबूत करते हैं और समुदाय की आत्मविश्वास से भरी भावना को साझा करते हैं। इसके साथ ही, खैरवार जनजाति के लोकगीत इनकी संस्कृति को और अधिक रंगीन और समृद्ध बनाते हैं।


लोकनृत्य- खैरवार janjati के प्रमुख lok nritya निम्नलिखित हैं:


झुमर: झुमर खैरवार जनजाति का प्रमुख नृत्य है, जिसे वे अपने त्योहारों और समाजी अवसरों पर प्रदर्शित करते हैं। इस नृत्य में लोग गाने और नृत्य के माध्यम से आनंद और उत्साह का अनुभव करते हैं।


छह भाव: छह भाव भी खैरवार जनजाति के लोगों का एक लोकप्रिय नृत्य है। इस नृत्य में लोग विभिन्न भावों को दर्शाते हैं जैसे कि प्रेम, खुशी, शोक, क्रोध, भय, और वीरता।


भंगड़ा:भंगड़ा भी खैरवार जनजाति के लोगों का प्रमुख नृत्य है, जिसे वे उत्सवों और त्योहारों में आनंद से प्रदर्शित करते हैं। इसमें लोग धमाकेदार भंगड़ा स्टेप्स के साथ गाने और नृत्य का मजा लेते हैं।


लोकनृत्य अंग: खैरवार जनजाति के लोग अपने शरीर के विभिन्न अंगों के साथ भी नृत्य करते हैं। इनमें हाथ, पैर, गर्दन, और मुख आदि शामिल होते हैं, जिन्हें उन्होंने विकसित किया है और इस नृत्य के रूप में प्रदर्शित करते हैं।


ये लोक नृत्य खैरवार जनजाति के समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं, और इन्हें उनके समाजी अवसरों और त्योहारों में आनंद से प्रदर्शित किया जाता है। खैरवार जनजाति की संस्कृति में लोक नृत्य भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये नृत्य समुदाय के सामाजिक और सांस्कृतिक अवसरों पर प्रदर्शित होते हैं और लोगों के जीवन में उत्साह और रंग भरते हैं। खैरवार जनजाति के लोक नृत्य एक समृद्ध और आकर्षक परंपरागत कला हैं जिनमें स्थानीय भाव, भक्ति, और धार्मिक भाव दिखाए जाते हैं।


कुछ प्रमुख खैरवार लोक नृत्य निम्नलिखित हैं:

"बिहू नृत्य": खैरवार जनजाति का बिहू नृत्य उनके विभिन्न परंपरागत उत्सवों में एक प्रमुख रूप से प्रदर्शित जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य में लोग खुशियों के साथ गाने-नाचे करते हैं और अपने समुदाय के सदस्यों के साथ आनंद का अनुभव करते हैं।


"छौबन नृत्य": छौबन नृत्य भी खैरवार जनजाति का लोक नृत्य है जो खासकर पुष्कर मेले जैसे धार्मिक मेलों पर प्रदर्शित किया जाता है। इस नृत्य में लोग धार्मिक कथाओं का प्रस्तुतिकरण करते हैं और भक्ति भाव से नृत्य का आनंद लेते हैं।


"घुमार नृत्य": खैरवार जनजाति का घुमार नृत्य भी उनके लोक नृत्यों में प्रसिद्ध है। इसमें लोग विभिन्न धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर नृत्य करते हैं और खूबसूरत रंगीन स्वरूप में आनंद उत्पन्न करते हैं।


खैरवार जनजाति के लोक नृत्य उनके समाज के लोगों की संस्कृति, परंपराएँ, और भावनाओं को बढ़ावा देते हैं और समुदाय की आनंददायक समयबद्धता को साझा करते हैं। इन नृत्यों का मूल उद्देश्य समुदाय के सदस्यों को मनोरंजन करने के साथ-साथ उन्हें एक साथ आनंदित रखना होता है। ये नृत्य समाज की आत्मविश्वास से भरी एकता को भी प्रतिष्ठित करते हैं और समाज की एकजुटता को संक्षेप्त रूप से प्रदर्शित करते हैं।


खैरवार जनजातियो के देवी-देवता (Gods and Goddesses of Khairwar Tribes):-

खैरवार जनजाति के प्रमुख देवी-देवता ठाकुरदेव, महारानी देवी, बूढ़ीमाई, सतीदेवी, बंजारिन देवी, खूंटदेव, सोहराई, गुरमा देव आदि प्रमुख है। किन्तु इसके अलावा भी कई देवी देवताओं की पुजा अर्चना की जाती है।


भूमिदेवी: खैरवार जनजाति के लोग मूलतः कृषि और पशुपालन पर आधारित रहते हैं, इसलिए भूमिदेवी (धरा माता) उनके लिए महत्वपूर्ण देवी हैं।


वैष्णवी माता: खैरवार समुदाय में वैष्णवी माता को भी विशेष माना जाता है। वे उनकी भक्ति और आराधना करते हैं और उन्हें खुश करने के लिए विशेष पूजा करते हैं।


शिवजी: खैरवार जनजाति के लोग भगवान शिव (भोलेनाथ) को भी अपने प्रमुख देवता में से एक मानते हैं। उन्हें शिवरात्रि और शिव पर्वों पर पूजा की जाती है।


सूर्यदेवता: खैरवार जनजाति के लोग सूर्य देवता की भी विशेष पूजा करते हैं। छठ पर्व जैसे त्योहारों में वे सूर्य की पूजा करते हैं और सूर्यास्त और सूर्योदय के समय नदी या तालाब के किनारे सूर्य की आराधना करते हैं।


धरमेश्वर महादेव: खैरवार जनजाति के लोग मुख्य रूप से शैव परंपरा के अनुयायी होते हैं और धरमेश्वर महादेव को अपने मुख्य देवता के रूप में पूजते हैं। महादेव को उनके समाज में शिवलिंग के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है और उन्हें वैभवपूर्ण शिवरात्रि और शिवजी के अन्य विशेष त्योहारों में धूमधाम से पूजा अर्चना की जाती है।


गौरी माता: खैरवार जनजाति के लोग देवी गौरी की अधिष्ठात्री मानते हैं और उन्हें देवी माता के रूप में पूजते हैं। गौरी माता को माँ दुर्गा की सहायक देवी माना जाता है और उन्हें नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दौरान विशेष भक्ति भाव से पूजा जाता है।


सुन्दरी देवी: सुन्दरी देवी खैरवार जनजाति की एक अन्य प्रमुख देवी हैं, जिन्हें समुदाय के लोग भक्ति और समर्पण के साथ पूजते हैं। उन्हें खासकर तीज और बसंत पंचमी जैसे त्योहारों में पूजा जाता है।


सूर्य देवता: सूर्य देवता को खैरवार जनजाति के सदस्य अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण देवता मानते हैं। सूर्य देवता को समुदाय के लोग ध्यान और स्तुति का विषय मानते हैं, और उन्हें सूर्याष्टमी जैसे त्योहारों में विशेष भक्ति भाव से पूजते हैं।


खैरवार जनजाति में प्रमुख विवाह संस्कार (Major marriage rites in Khairwar tribe):-

खैरवार जनजाति में कुछ प्रमुख विवाह प्रक्रियाएं होती हैं, जिनमें समाज के अनुसार भिन्न-भिन्न रस्म और परंपराएं शामिल होती हैं। निम्नलिखित कुछ प्रमुख विवाह प्रक्रियाएं खैरवार जनजाति में व्यापक रूप से मनाई जाती हैं:


धर्मिक विवाह: खैरवार जनजाति में धर्मिक विवाह बहुत मायने रखता है। विवाही जोड़े के परिवारों के अनुसार विवाह को धार्मिक रूप से पुष्टि की जाती है और धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-अर्चना के साथ विवाह की प्रक्रिया को सम्पन्न किया जाता है। धर्मिक विवाह में विवाही जोड़े को पुरानी परंपराओं के अनुसार शादी के मंत्रों का जाप किया जाता है और धार्मिक रूप से विवाह का आयोजन होता है।


सामाजिक विवाह: खैरवार जनजाति में सामाजिक विवाह भी आमतौर पर देखा जाता है। इसमें विवाह के आयोजन में समाज के सदस्यों का सहयोग होता है और समाज के अनुसार विवाह की पुष्टि की जाती है। विवाही जोड़े के परिवार द्वारा विवाह की तारीख और स्थान तय किए जाते हैं और विवाह के दौरान समाज के सदस्य एकजुट होकर उत्साह और आनंद के साथ विवाह का आयोजन करते हैं।


प्राकृतिक विवाह: कुछ खैरवार जनजाति के समाजों में प्राकृतिक विवाह की प्रक्रिया भी देखी जाती है। इसमें विवाही जोड़े के परिवार विवाह को प्राकृतिक रूप से और बिना शहरी अनुवादित धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों के साथ संपन्न करते हैं। ये विवाह अपने समाजी और प्राकृतिक जीवनशैली को बनाए रखने के लिए प्रसिद्ध होते हैं।


खैरवार जनजाति में विवाह संस्कार एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक प्रक्रिया है। विवाह संस्कार खैरवार समुदाय में सम्प्रदायिकता और समाजी एकता को दिखाता है और विवाही जोड़े के बीच धार्मिक और सामाजिक बंधन को स्थापित करता है। यह संस्कार खैरवार समाज में गहरे संस्कृति और परंपराओं से जुड़ा हुआ है।


खैरवार जनजाति में विवाह संस्कार की प्रक्रिया निम्नलिखित तरीके से संपन्न होती है:

सगाई (बेट्रोथल): विवाह संस्कार की शुरुआत सगाई रस्म से होती है। इसमें विवाही जोड़े के परिवारों के बीच मिलने का अवसर बनता है और शादी के योजना बनाई जाती है। सगाई में विवाही जोड़े के बीच वचनबद्धता का पालन किया जाता है और शादी की तारीख और शर्तें निर्धारित की जाती हैं।


बारात: विवाही जोड़े के परिवार और समाज के सदस्यों के साथ विवाह के लिए बारात निकाली जाती है। इसमें विवाही जोड़े के परिवार और दोस्तों के साथ धूमधाम से सजी गौराईयों के साथ विवाह स्थल पर पहुंचते हैं और विवाह के आयोजन में भाग लेते हैं।


विवाह समारोह: खैरवार जनजाति में विवाह समारोह खूबसूरत और धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें विवाही जोड़े के परिवार और समाज के सदस्यों के बीच मिलने का अवसर मिलता है और सभी मिलकर खुशियों के साथ विवाह समारोह का आयोजन करते हैं। यहां पर भजन-कीर्तन, नृत्य, गाने और खाने-पीने का भी आनंद उठाया जाता है।


विवाह फेरे: विवाह संस्कार में विवाही जोड़े के बीच विवाह फेरे लिए जाते हैं। खैरवार जनजाति में विवाह फेरों की संख्या आमतौर पर सात होती है और प्रत्येक फेरे में सप्तपदी शपथ ली जाती है। यह सप्तपदी शपथ विवाही जोड़े के बीच एक-दूसरे के साथ जीवनभर के संबंध बनाने की प्रतिज्ञा है।


अन्तिम विदाई: विवाह संस्कार का अंत विवाही जोड़े की विदाई होती है। विवाही जोड़े के बाद, कन्या को अपने मायके से जाकर अपने ससुराल में स्वागत किया जाता है। इस विदाई के समय उन्हें धन्यवाद और शुभकामनाएं दी जाती हैं और वे अपने नए जीवन की शुरुआत के लिए आगमन करती हैं।


खैरवार जनजाति की प्रमुख विवाह प्रथा निम्नलिखित है:


अंदरूनी विवाह: खैरवार जनजाति में अंदरूनी विवाह अपनाया जाता है, जिसमें लड़का और लड़की के परिवार एक ही समुदाय से होते हैं। इस प्रकार के विवाह में विवाहिता को अपने मायके से नये घर में जाना नहीं पड़ता, बल्कि वे अपने परिवार में ही रहते हैं और नए घर में विवाहीत के साथ सम्बंध बनाते हैं।


संपरस्पर विवाह: खैरवार जनजाति में संपरस्पर विवाह भी होता है, जिसमें दो विवाहीत परिवारों के लड़का और लड़की के बीच विवाह होता है। इस प्रकार के विवाह में विवाहिता को नए घर में जाना पड़ता है और वहां पर नए परिवार के सदस्य बनती है।


बाल विवाह: खैरवार जनजाति के अधिकांश समुदायों में बाल विवाह नहीं होता है और विवाह का आयु निर्धारित करने के लिए कानूनों का पालन किया जाता है। हालांकि, कुछ समुदायों में इस प्रकार की प्रथा का पालन किया जाता है, जो कानून द्वारा गैर-साधारण होता है।


यह प्रमुख विवाह प्रथाएं खैरवार जनजाति के समाज की संरचना और आधारभूत संबंधों को दर्शाती हैं और उनके समुदाय में एकता और समरस्ता को बढ़ाने में मदद करती हैं।


महत्वपूर्ण बिंदु:-

  • खैरवार जनजाति के लोग मुख्य रूप खैर वृक्ष से कत्था बनाने के काम करते है।

  • खैरवार जनजाति में विवाह की रस्म परंपरागत जाति पंचायत के प्रमुख "महतो माँझी" द्वारा सम्पन्न कराया जाता है।

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