धनवार जनजाति | Dhanwaar Janjati

इस पोस्ट मे धनवार जनजाति (Dhanwaar Tribes Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।


Dhanwaar Tribes Overview
जनजाति का नाम धनवार जनजाति
धनवार जनजाति के गोत्र इनके प्रमुख गोत्र कुमरा, मरई, उइके, उर्रे आदि हैं।
निवास स्थान छत्तीसगढ़

धनवार जनजाति(Dhanwaar Tribes)- धनवार जनजाति छत्तीसगढ़ राज्य के विभिन्न भागों में निवास करने वाली एक आदिवासी जनजाति है। यह जनजाति छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर और दंतेवाड़ा जिलों में पाई जाती है। छत्तीसगढ़ राज्य में धनवार जनजाति के सदस्य विभिन्न जिलों और क्षेत्रों में निवास करते हैं। यह जनजाति छत्तीसगढ़ के पूर्वी भागों में जैसे कि रायगढ़, कोरबा, जशपुर, सरगुजा, बास्तर, दंतेवाड़ा, और दुर्ग जिलों में पायी जाती है। इन जिलों में धनवार जनजाति की संख्या अधिकतर है और वे अपनी परंपरागत जीवनशैली को निभाते हैं।


धनवार जनजाति के लोग मुख्य रूप से गांवों में निवास करते हैं जो खेती और वन्य जीवन के लिए उपयुक्त होते हैं। इन गांवों में धनवार जनजाति के लोग समृद्धि, समाज और संस्कृति को समर्थन करते हैं और अपनी परंपरागत जीवनशैली को बचाने में जुटे रहते हैं। छत्तीसगढ़ के सुंदर प्राकृतिक स्थलों में बसे हुए हैं जिनमें घने जंगल, पहाड़, नदियाँ और झीलें शामिल होती हैं। इन स्थानों पर उन्हें अपने परंपरागत जीवनशैली को जीने का अवसर मिलता है और इससे उन्हें अपनी संस्कृति और धार्मिकता को बचाने में सहायता मिलती है।


धनवार जनजाति का इतिहास (History of Dhanwar Tribe):-

दंत कथाओं के अनुसार पुराने जमाने में धनुष बाणों से युद्ध किया जाता था जिनका निर्माण आदिवासी करते थे। धनुष बाण तैयार 'करने वाले आदिवासी धनवार कहलाने लगे। धनवार जनजाति का इतिहास भारतीय जनजातियों के समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत से भरा है। उनके जीवन और धरोहर को संरक्षित रखने के लिए संघर्ष की कई कहानियां हैं। इन्होंने अपने समृद्ध संस्कृति को सांझा करने के लिए धार्मिकता, विध्वंसक समस्याओं, और सामाजिक परिवर्तनों का सामना किया है। धनवार जनजाति के लोग अपनी परंपरागत कला, गान-नाच, और विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी शैलीकारी कला में अनूठे आभूषण, संगीत, और नृत्य होता है जिसे वे अपने समाज में संजीवनी रखने के लिए उपयोग करते हैं।


धनवार जनजाति के इतिहास में धार्मिकता भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वे अपने परंपरागत धर्मों और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं और अपने धर्म के तहत अनुष्ठानों को महत्व देते हैं उनके समाज के विकास, संघर्षों, और समृद्धि के किस्से से भरा है। इनका इतिहास उनकी सांस्कृतिक विरासत और विविधता को प्रकट करता है, जो उन्हें एक अलग-थलग समृद्ध जनजाति बनाता है।


धनवार जनजाति की भाषा व बोली(Language and dialect of Dhanwar tribe)

धनवार जनजाति की भाषा तथा बोली हिंदी के उपजाति में आती है। यह भाषा धनवार जनजाति के लोगों के आपसी संवाद में उपयोग की जाती है और समाज की संचार का महत्वपूर्ण साधन है। धनवार जनजाति के लोग इस भाषा का प्रयोग अपने समाज, संस्कृति, और परंपराओं को संज्ञान में रखने में करते हैं। कथा-कहानियों, लोक गीतों, और नृत्यों में भी किया जाता है और इससे समाज की भाषा, संस्कृति, और गौरव का प्रदर्शन होता है। धनवार जनजाति की भाषा और बोली उनके समाज की अमूल्य समृद्धि हैं जो उनकी अलगाववादी और समृद्ध संस्कृति का प्रतीक हैं। इस भाषा के अलावा आदिवासी लोग छत्तीसगढ़ी भाषा और मराठी भाषा में भी पारंगत हैं।


धनवार जनजाति के वस्त्र एवं आभूषण (Clothing and ornaments of the Dhanwar tribe):-

धनवार जनजाति के वस्त्र और आभूषण उनकी संस्कृति और परंपरागत धार्मिकता का प्रतीक होते हैं। इनके वस्त्र और आभूषण स्थानीय पद्धति और स्थानीय जीवनशैली से प्रभावित होते हैं और उनके समाज के विभिन्न अवसरों पर पहने जाते हैं।


वस्त्र: - धनवार जनजाति के वस्त्र में धार्मिक और सांस्कृतिक भाव व्यक्त होते हैं। प्रसिद्ध धनवार जनजाति के महिलाएं साड़ी या उनके लोकप्रिय लहंगा-चोली पहनती हैं। साड़ी में पारंपरिक मोटी पट्टीयाँ, बूटियाँ, और शिल्पकारी काम होते हैं जो उन्हें विशेष बनाते हैं। पुरुष धनवार जनजाति के लोग धोती और कुर्ता पहनते हैं जो उनकी परंपरागत पहनावा है।


आभूषण: - धनवार जनजाति के लोगों के आभूषण भी स्थानीय परंपरा के अनुसार बनते हैं। इन्हें प्राकृतिक सामग्री से बनाया जाता है जैसे कि धातु, पत्थर, खड़ी मिट्टी, मोती, लहसुनिया, सेमी-प्रेशियस पत्थर, और लकड़ी का उपयोग किया जाता है। कुछ प्रसिद्ध आभूषण उन्हें हाथी दांत से बने हुए होते हैं।


- महिलाएं मोतियों, सोने और चांदी के गहने, बाजुबंद, हार, कंगन, और बाजूबंद जैसे आभूषण पहनती हैं। यह आभूषण उनकी सुंदरता को और बढ़ाते हैं और उनके विशेषता को निखारते हैं धनवार जनजाति के वस्त्र और आभूषण उनकी सांस्कृतिक धारों का प्रतीक होते हैं और उनके लोक संस्कृति को दर्शाते हैं। ये आभूषण और वस्त्र समाज के विभिन्न अवसरों पर धार्मिक उत्सवों, शादियों, और अन्य खुशी के अवसरों पर पहने जाते हैं।


धनवार जनजाति का रहन-सहन और संस्कृति(Living and Culture of Dhanwar Tribe):-

धनवार जनजाति का रहन-सहन और संस्कृति उनके समृद्ध और विविध जीवन शैली को प्रकट करता है। इनके रहन-सहन और संस्कृति में अपनी खासियत होती है जो उन्हें अनूठे और अलग-थलग बनाती है।


रहन-सहन: धनवार जनजाति के लोग अधिकांशतः गाँवों या छोटे-छोटे बस्तियों में रहते हैं। इन गाँवों में उनके आवास घर बंबू, लकड़ी, घास-पत्ती और मिट्टी से बने होते हैं। धनवार जनजाति के लोग जंगली क्षेत्रों में बसे होते हैं और अपने आवासों को प्राकृतिक संसाधनों से बनाते हैं। वे अपने आवास को खूबसूरत और सुरक्षित बनाने के लिए खास प्रयास करते हैं।


खान-पान: धनवार जनजाति का खान-पान धान, गेहूँ, जौ, और सब्जियों पर आधारित होता है। वे अपने खेतों में उगाई गई फसल का सेवन करते हैं और समय-समय पर जंगली फलों और सब्जियों को भी खाते हैं। इनके खाने के तौर-तरीके में भी उनकी खासियत होती है, जो उन्हें अनूठे बनाती है।


धार्मिकता: धनवार जनजाति के लोग अपने परंपरागत धर्मों का पालन करते हैं। वे धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा-अर्चना, और व्रत करते हैं और अपने देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा रखते हैं। उनके धार्मिक अनुष्ठान में ध्यान, गीत, और विशेष आरतियाँ भी शामिल होती हैं।


भाषा और संस्कृति: धनवार जनजाति की भाषा धनवारी भाषा है, जो उनकी मूल भाषा है। इस भाषा में वे अपनी भावनाएँ, विचार, और भाषा साझा करते हैं। धनवार जनजाति की संस्कृति में विशेष संस्कृति विरासत है जो उन्हें अलग बनाती है। धनवार जनजाति का रहन-सहन और संस्कृति उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास का प्रतिबिंब है। इनकी रहन-सहन और संस्कृति में उनकी समृद्ध विरासत और विविधता प्रकट होती है, जो इन्हें एक अलग-थलग जनजाति बनाती है।


धनवार जनजातियों की कृषि (Agriculture of Dhanwar tribes):-

धनवार जनजाति की कृषि मुख्य रूप से संख्यात रही है, जो उनके लिवलीहूड का मुख्य स्रोत है। धनवार जनजाति अपने क्षेत्र में खेती और वन्य जीवन से जुड़े रहते हैं। इसके लिए वे स्थानीय जलवायु, मौसम और भूमि के अनुसार अलग-अलग प्रकार की कृषि पद्धतियों का उपयोग करते हैं। कृषि के क्षेत्र में, धनवार जनजाति धान, जूवार, मक्का, बाजरा, रागी, चना, मूँगफली, तिलहनी, और सरसों जैसी फसलों की उत्पादन करती है। इसके अलावा, वे छोटे पशुओं को पालते हैं जैसे कि भैंस, बकरी, भेंड, मुर्गी, और बत्तख।


धनवार जनजाति की कृषि पद्धति प्राकृतिक और स्थानीय जीवनशैली के अनुरूप होती है। उन्होंने अपने अनुभव और परंपरागत ज्ञान के आधार पर खेती को समृद्ध किया है और यह उनके समाज की संचारिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, विकास के साथ, धनवार जनजाति की कृषि भी बदल रही है और वे नवीनतम और सुसंगत कृषि तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं ताकि उनकी उत्पादकता और आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।


धनवार जनजाति के मुख्य त्यौहार (Main festivals of Dhanwar tribe):-

धनवार जनजाति के मुख्य त्योहार उनके समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक अनुसरण का प्रतीक होते हैं और समाज के विभिन्न अवसरों पर उत्सव और धार्मिक कार्यक्रमों के रूप में मनाए जाते हैं। ये त्योहार समाज के सभी सदस्यों के बीच समरसता और आत्मीयता का भाव बढ़ाते हैं।


कुछ प्रमुख धनवार जनजाति के त्योहारों के नाम निम्नलिखित हैं:

धर्मेश्वर माँ जयंती (Dharmeshwar Maa Jayanti) - यह त्योहार धनवार जनजाति के प्रमुख देवी धर्मेश्वर माँ के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर समाज के सदस्य धार्मिक पूजा-अर्चना करते हैं और भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं।


नाग पंचमी (Nag Panchami) - धनवार जनजाति में नाग पंचमी का विशेष महत्व होता है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और समाज के लोग नाग मंदिरों में जाते हैं।


हरा गोराया त्योहार (Hara Goraaya Tyohar) - धनवार जनजाति में हरा गोराया त्योहार भी मनाया जाता है। इस त्योहार में समाज के सदस्य भजन-कीर्तन करते हैं और धार्मिक विधियों का पालन करते हैं।


सरस्वती पूजा (Saraswati Puja) - धनवार जनजाति में सरस्वती पूजा का भी महत्व होता है। इस दिन सरस्वती मां की पूजा की जाती है और विद्या, कला और ज्ञान की देवी मां का सम्मान किया जाता है।


दशहरा (Dussehra) - धनवार जनजाति में दशहरा का भी धार्मिक त्योहार मनाया जाता है। इस दिन राम लीला का पारायण किया जाता है और विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है। ये त्योहार धनवार जनजाति के समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण हैं और समाज के विभिन्न अवसरों पर उत्सव के रूप में धूमधाम से मनाए जाते हैं।


धनवार जनजाति के लोकगीत एवं लोकनृत्य (Folk songs and folk dances of Dhanwar tribe):-

लोकगीतलोक गीतों में करमा गीत, ददरिया गीत, सुआ गीत, विहाव गीत, जवांरा गीत आदि प्रमुख हैं। धनवार जनजाति के लोक गीत समृद्ध और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। ये गीत समाज की भावनाओं, जीवन के अनुभवों, प्राकृतिक सौंदर्य, और संस्कृति को प्रकट करते हैं। धनवार जनजाति के लोक गीत गायन, नृत्य, और समाज में समारंभों में विशेष अहमियत रखते हैं। धनवार जनजाति के लोक गीत समाज की संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण अंग हैं और इनके माध्यम से उनकी भावनाओं, संस्कृति, और अनुभवों को समर्थन मिलता है।


कुछ धनवार जनजाति के प्रमुख लोक गीतों के नाम निम्नलिखित हैं:

चित्तौड़ी नाच: चित्तौड़ी नाच धनवार जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य और लोक गीत है। इस नृत्य में गायक और नृत्यांगने एक साथ नृत्य करते हैं और लोक गीतों के साथ इसे संगीतिक रूप दिया जाता है। यह नृत्य धनवार जनजाति की समृद्ध संस्कृति का प्रतीक है और समाज में उत्सवों और त्योहारों में विशेष महत्व रखता है।


गोवाड़ी गीत: गोवाड़ी गीत धनवार जनजाति के अन्य लोक गीतों में एक प्रमुख रूप से गाया जाने वाला गीत है। इसमें गायक अपने भावों को ध्यान में रखते हुए भजनों और भक्ति गीतों का अभिनय करते हैं।


झुमर गीत: झुमर धनवार जनजाति का एक प्रमुख लोक गीत है जिसमें गायक और नृत्यांगने मिलकर नृत्य करते हैं। यह गीत समाज की खुशियों और उत्सवों में गाया जाता है और लोगों को समाज में एकता और समरसता की भावना देता है।


वीर गीत: धनवार जनजाति के वीर गीत समाज के युवकों द्वारा गाया जाता है और इसमें समाज के वीर गाथाओं का वर्णन किया जाता है। ये गीत समाज की साहसिकता, धैर्य, और उत्साह को बढ़ाते हैं।


लोकनृत्यधनवार जनजाति में कर्मा पूजा के अवसर पर युवक-युवतियाँ मिलकर नाचते हैं। नृत्य के समय ढोल, मांदर, थाली आदि बजाते हैं। महिलायें दीवाली में पड़की नाचती हैं।धनवार जनजाति के प्रमुख लोक नृत्य समृद्ध और रंगीन होते हैं, जिनमें समाज के विभिन्न अवसरों पर गायक और नृत्यांगने साथ मिलकर नृत्य करते हैं। ये नृत्य धनवार जनजाति की समृद्ध संस्कृति, धार्मिकता, और समाज के मूल्यों का प्रतीक होते हैं। इन नृत्यों के माध्यम से समाज में उत्सवों, त्योहारों, और खुशियों के अवसर पर लोग एकता और समरसता का भाव प्रकट करते हैं।


कुछ धनवार जनजाति के प्रमुख लोक नृत्यों के नाम निम्नलिखित हैं:

चित्तौड़ी नृत्य: चित्तौड़ी नृत्य धनवार जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य है। इसमें गायक और नृत्यांगने साथ मिलकर नृत्य करते हैं और लोक गीतों के साथ इसे संगीतिक रूप दिया जाता है। चित्तौड़ी नृत्य समाज की खुशियों, उत्सवों, और त्योहारों में गाया जाता है और इसके माध्यम से भावुकता और समरसता का संदेश दिया जाता है।


घुमार नृत्य: घुमार नृत्य धनवार जनजाति का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है जिसमें गायक और नृत्यांगने विशेष तौर पर ताल में नृत्य करते हैं। इस नृत्य में धनवार जनजाति की संस्कृति और रीति-रिवाज़ का प्रतीक दिखता है और यह समाज में सभी अवसरों पर गाया जाता है।


छटीक नृत्य: छटीक नृत्य धनवार जनजाति का एक अन्य लोक नृत्य है जिसमें गायक और नृत्यांगने नृत्य करते हैं। यह नृत्य समाज की प्राचीन रीति-रिवाज़ों और संस्कृति को दर्शाता है और समाज के आदिकाल से चली आ रही है।


धनवार जनजाति के लोक नृत्य समाज की सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर को जीवंत रखने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं और इनके माध्यम से लोग अपने संगीत, नृत्य, और समाज के मूल्यों को समर्थन मिलता है।


धनवार जनजाति के प्रमुख देवी-देवता (Major deities of Dhanwar tribe):-

धनवार जनजाति के प्रमुख देवी-देवता ठाकुर देव, बूढ़ा देव, बूढ़ी माई, भैसासूर, काला भैंसा, माटीदेव तथा कुल देवी आदि हैं। धनवार जनजाति के धार्मिक जीवन में कई देवता-देवीयों की पूजा की जाती है। यहां कुछ प्रमुख देवी-देवता के नाम दिए जाते हैं:


धर्मेश्वर माँ (Dharmeshwar Maa) - धनवार जनजाति की मुख्य देवी माँ है। वे धनवार जनजाति के धार्मिक देवी-देवताओं में सबसे प्रमुख हैं और समाज के धार्मिक कार्यों और उत्सवों में विशेष आदर से पूजा जाती हैं।


नाग देवता (Nag Devata) - नाग देवता धनवार जनजाति की अन्य एक प्रमुख देवता हैं। वे सर्प देवता के रूप में पूजे जाते हैं और समाज के व्यापारिक और कृषि के कामों में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका होती है।


थाकुर बाबा (Thakur Baba) - थाकुर बाबा धनवार जनजाति के प्रमुख देवता में से एक हैं। वे समाज के संघर्षों और धार्मिक कार्यों के नेतृत्व करते हैं और समाज की रक्षा में सहायक होते हैं।


महाकाली माँ (Mahakali Maa) - महाकाली माँ धनवार जनजाति की दूसरी महत्वपूर्ण देवी हैं। वे शक्ति की देवी मां के रूप में पूजी जाती हैं और समाज के उत्सवों और धार्मिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।


सुन्दरी माँ (Sundari Maa) - सुन्दरी माँ धनवार जनजाति की और एक प्रमुख देवी हैं जो समाज के सामाजिक और धार्मिक उत्सवों में विशेष आदर से पूजी जाती हैं। धनवार जनजाति में अन्य भी कई देवी-देवताएं पूजी जाती हैं जो समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में अहम भूमिका निभाती हैं। ये देवी-देवता समाज की संस्कृति, परंपरा और धार्मिकता के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। धनवार जनजाति के लोग अपने धार्मिक अनुष्ठान में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। इन देवी-देवताओं का स्थानिक धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों में महत्वपूर्ण योगदान होता है। धनवार जनजाति के लोग धार्मिकता को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं और इन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं।


कुछ प्रमुख धनवार जनजाति के देवी-देवताएं निम्नलिखित हैं:

माँ धरती देवी: माँ धरती देवी धनवार जनजाति की मातृ देवी मानी जाती हैं। इनको भूमि माँ भी कहा जाता है। यह धरती देवी उनके जीवन के साथ जुड़े खेती-बाड़ी के कामों, प्राकृतिक संसाधनों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए पूजी जाती हैं।


भूतां देवता: धनवार जनजाति के लोग भूतां देवता की भी पूजा करते हैं। भूतां देवता को खेत-खलिहान, जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों के रक्षक माना जाता है। वे इनकी पूजा करते हैं और उनसे अपने जीवन की सुरक्षा और भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं।


माँ जगदम्बा: माँ जगदम्बा धनवार जनजाति की एक प्रमुख देवी मानी जाती हैं। इन्हें मां जी भी कहा जाता है। यह देवी शक्ति, साहस, और समृद्धि की संकेतना मानी जाती हैं। धनवार जनजाति के लोग उनकी पूजा करते हैं और उनसे शक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।


धनवार जनजाति के देवी-देवताओं की पूजा और अर्चना उनके समाज के सांस्कृतिक अभिवृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन्हीं देवी-देवताओं के चरणों में उनके जीवन के सभी महत्वपूर्ण अवसरों पर अर्पण करके धनवार जनजाति के लोग अपने जीवन को समृद्ध और सुखी बनाने का प्रयास करते हैं।


धनवार जनजातियो मे विवाह संस्कार (Marriage rituals in Dhanwar tribes):-

धनवार जनजाति के विवाह प्रथा में उनकी संस्कृति, परंपराएं और स्थानीय रीति-रिवाज़ों का प्रभाव होता है। विवाह धनवार जनजाति के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक घटना होती है जो समाज के आदिकाल से चली आ रही है। इसे धार्मिकता, परंपरा और संस्कृति के अनुसार आयोजित किया जाता है। विवाह के अवसर पर चावल, दाल, गुड़, हल्दी तेल, वधु के कपड़े, मंद, बकरा, 50 से१00 रूपये नगद, सूक भरना के रूप में वर पक्ष की ओर से व्यु पक्ष को देने का रिवाज है। परम्परागत जाति पंचायत का मुखिया धनिया कहलाता है। यह पद वंशानुगत होता है। जाति पंचायत में सामाजिक एवं वैवाहिक विवादों का निपटारा किया जाता है।


धनवार जनजाति में विवाह प्रथा की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:


आयोजन और मुहूर्त: धनवार जनजाति में विवाह अधिकतर अधीनस्थ समाज के सभी व्यक्तियों की सहमति से होता है। विवाह का आयोजन समाज के वरिष्ठ सदस्यों और पुराने गुरुओं के सुझाव पर किया जाता है। इसके लिए विशेष मुहूर्त और तिथियां चुनी जाती हैं जो समाज के धार्मिक पंचांग और विधि-विधान के अनुसार होती हैं।


वधु-वर का चयन: विवाह के लिए वधु और वर का चयन परिवारों के सहमति से होता है। यहां ध्यान रखा जाता है कि वर और वधु का आपसी समाजिक स्थान, धर्म, वर्ण और उम्र में समानता हो।


कन्या-दान: धनवार जनजाति में विवाह के समय पिता अपनी बेटी को कन्या-दान के रूप में वर के परिवार को सौंपता है। यह एक पवित्र समारंभ होता है जो विवाह की प्राथमिकता में होता है।


विवाह विधि: धनवार जनजाति के विवाह का अधिकांश अंश अपनी परंपरागत संस्कृति और धार्मिकता के अनुसार होता है। विवाह मंडप में विशेष धार्मिक अनुष्ठान, मंत्रों की पठनीयता, और हवन कराया जाता है। विवाह के बाद दाह संस्कार भी आयोजित किया जाता है।


विवाहित जीवन: धनवार जनजाति के विवाहित जीवन में परिवार के सभी सदस्यों के सहयोग और समर्थन का महत्व होता है। विवाहित जोड़े को समाज का आदर्श मानते हैं और उनका जीवन धार्मिक अनुष्ठान, परंपराएं, और संस्कृति के अनुसार चलता है।


धनवार जनजाति के विवाह प्रथा में समाज के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों का महत्वपूर्ण योगदान होता है और इससे समाज की एकता, समरसता और समृद्धि का संकेत मिलता है।


धनवार जनजाति में विवाह कई प्रकार के होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख विवाह विधियां निम्नलिखित हैं:


अर्धा-विधुरा विवाह: यह एक प्राचीन विवाह प्रथा है जिसमें व्यक्ति अविवाहित होने के कारण विवाह के अवसर पर किसी विधवा या विधुर व्यक्ति से विवाह करता है। धनवार जनजाति में अर्धा-विधुरा विवाह को स्वीकार्य माना जाता है और इसमें न केवल एक व्यक्ति का जीवन साथी बनाया जाता है, बल्कि विधवा या विधुर को समाज में एक मानवीय अधिकार दिया जाता है।


अनुलोम विवाह: यह विवाह प्रथा उस समय होती है जब व्यक्ति अपनी जाति या वर्ण से नीचे रखते हैं और उनके विवाह किसी उच्च जाति या वर्ण के व्यक्ति से होता है। धनवार जनजाति में अनुलोम विवाह को स्वीकार्य नहीं माना जाता है और इसे अनुचित माना जाता है।


प्रतिलोम विवाह: यह विवाह प्रथा उस समय होती है जब व्यक्ति अपनी जाति या वर्ण से ऊपर रखते हैं और उनके विवाह किसी नीचे जाति या वर्ण के व्यक्ति से होता है। धनवार जनजाति में प्रतिलोम विवाह को स्वीकार्य नहीं माना जाता है और इसे अनुचित माना जाता है।


अनुगमन विवाह: यह विवाह प्रथा उस समय होती है जब व्यक्ति अपनी समाज में या गोत्र में निम्न स्तर पर रखते हैं और उनके विवाह किसी उच्च स्तर पर होते हैं। धनवार जनजाति में अनुगमन विवाह को स्वीकार्य माना जाता है और इसे समाज का एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है।


ये विभिन्न प्रकार के विवाह धनवार जनजाति में देखे जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना महत्वपूर्ण स्थान होता है और इनके पीछे संस्कृति, परंपरा और समाज के विशेषता का प्रकट होता है।


धनवार जनजाति में होने वाले प्रमुख विवाह के नाम निम्नलिखित हैं:


लग्न विवाह: लग्न विवाह धनवार जनजाति में सबसे प्रमुख और पसंदीदा विवाह प्रथा है। इसमें विवाहित जोड़े का मिलन समाज के वरिष्ठ सदस्यों और पुराने गुरुओं के सुझाव पर होता है। इस विवाह में विशेष धार्मिक अनुष्ठान, मंत्रों की पठनीयता, और हवन कराया जाता है।


विदुरा विवाह: विदुरा विवाह धनवार जनजाति में एक महत्वपूर्ण विवाह प्रथा है जिसमें व्यक्ति अपनी जीवन साथी के रूप में विधवा या विधुर व्यक्ति से विवाह करता है। इसके माध्यम से समाज में विधवा या विधुर को समाज में एक आदर्श मानवीय स्थान दिया जाता है।


धर्मविवाह: धर्मविवाह धनवार जनजाति में एक और प्रमुख विवाह प्रथा है जिसमें विवाहित जोड़े का चयन समाज के पुराने धर्मगुरुओं के सुझाव पर होता है। धर्मविवाह में धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-अर्चना, और धार्मिक विधि-विधान का पालन किया जाता है।


अनुगमन विवाह: अनुगमन विवाह धनवार जनजाति में विशेष महत्व रखता है जिसमें विवाहित जोड़े का चयन उनके समाज या गोत्र के निम्न स्तर पर होता है। इस विवाह में समाज के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों का पालन किया जाता है और इससे समाज में एकता, समरसता, और समृद्धि का संकेत मिलता है।


ये प्रमुख विवाह प्रथाएं धनवार जनजाति में देखी जाती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना महत्वपूर्ण स्थान होता है और इनके पीछे संस्कृति, परंपरा और समाज के विशेषता का प्रकट होता है।


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