उरांव जनजाति | Oraon Tribe in Hindi

Oraon Tribe in Hindi

इस पोस्ट मे उरांव जनजाति (Oraon Tribe Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है। उरांव जनजाति के संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए इस article मे बने रहिए।


Oraon Tribes Overview
जनजाति का नाम उरांव जनजाति
उरांव जनजाति की उपजाति उरांव, धांगड़
उरांव जनजाति का गोत्र एक्का, मिंज, कुजूर, लकड़ा, टोप्पो, केरकेट्टा, खेस्स, किंडो, तिग्गा, किस्पोट्टा, खलखो, तिर्की, खाखा, बखला
निवास स्थान छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र
उरांव जनजाति की भाषा एवं बोली उरांव एवं कुड़ुख, सादरी, हिन्दी

उरांव जनजाति (Oraon Tribe)- उरांव शब्द गैर आदिवासी लोगों का दिया हुआ शब्द हैं। ये स्वयं को "कुड़ुख" कहते हैं, इनकी भाषा में बहुत से शब्द गुंडारी के हैं तथा कुछ द्रविड़ भाषी भी हैं जैसे, कोंध जनजाति का कोंड शब्द आदि। भाषाविद ग्रियरशियन का यह राय हैे कि कुरुख शब्द द्रविड़ भाषा का मूल रुप हैं। उनके अनुसार तमिल के गुरुडार्थी शब्द अर्थात् इसका संबंध कुरुग से एवं गरुड़ टोटम से है। उरांव जाति में पहले धांगर रखा करते थे। धांगर का मतलब होता है एक काम करने वाला। जिसके यहाँ ज्यादा बैल-बकरी हो या और कोई पशु हो या फिर ज्यादा खेती-बाड़ी हो उसका ख़्याल रखने के लिए रखा जाता उसे ही धांगर कहा जाता था। उड़िया भाषा में धांगर शब्द का अर्थ है, बंधुआ मजदूर (श्रमिक) होता हैं। जशपुर जो कि छत्तीसगढ़ एवं झारखंड के सीमा से जुड़ी है इसीलिए झारखंड की उरांव जनजाति एवं छतीसगढ़ की उरांव जनजाति के लोगो मे बहुत समानता होती है। उरांव जनजाति छत्तीसगढ़ में जशपुर, रायगढ़, कोरबा, सरगुजा, बलरामपुर एवं अन्य एसे कई जगहों में थोड़े थोड़े जनसंख्या में पाये जाते है। छत्तीसगढ़ की अन्य जनजातियों की तुलना में उरांव जनजाति में शैक्षणिक विकास अधिक हुआ है


उरांव जनजाति का इतिहास (History of Oraon Janjati):-

उरांव जनजाति का इतिहास अध्ययनों के आधार पर प्रारम्भिक यह माना जाता हैं। प्राचीन समय में उराव पश्चिमी व उत्तरी भागों में रहा करती थी, तत्पशचात इन्होने शाहाबाद भोजपुर क्षेत्र में प्रवेश किया। आर्यदेश के अतिक्रमण के कारण इन्हें शेहतासगढ छोडना पडा कुछ समय तक उराव ने रोहतास की पठारी इलाको में आश्रय लिया फिर छोटा नागपुर की ओर बढें। रोहतास छोडते समय ये दो दलो में बंट गये, एक दल गंगा के तटवर्ती इलाके से गुजरता हुआ राजमहल के पहाडी इलाको में पहुंचा उराव के वंशज सौरिया पहाडीया हुए दूसरा दल कोयला नदी के तटवर्ती मैदानो से होता हुआ पलायु में प्रवेश किया, पालुम के बाद इन्होने उत्तरी पूर्वी रांची में प्रवेश किया।


उराव के आगमन के पहले से रहने वाली मुण्डा रांची के दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र की ओर चले गये। छोटा नागपुर में उरावो कि आगमन काल दूसरी शताब्दीं माना जाता हैं। मुण्डा परिवार कि यह जनजाति अपनी भाषा के आधार पर द्रविड वर्ग की मानी जाती हैं, इनका मुख्य कारण उरावो का एतिहासिक वितरण हैं।


उराव भारत में दक्षिण कब पहुंचे यह ज्ञात नहीं इसी काल में वे अपने मूल भाषा भूला बैठे किंतु दक्षिण में अनेक सदियो तक द्रविण मूल की जातियां और जनजातियों के प्रभावों में उन्होने द्रविड भाषा अपना ली अपेक्षाकृत अपने नये इतिहास के उराव कर्नाटक से उत्तरी क्षेत्र की ओर बढने वाली जनजातियां माने जाते हैं। यह कथन उनकी परम्परा से सुनने को मिलती हैं, कि वे कर्नाटक मूल के लोग हैं कर्नाटक से बिहार और छत्तीसगढ पहुंचे जहां से उन्हें पुनः अपेक्षाकृत कम उर्वरक क्षेत्र छोटा नागपुर की पहाडियों में शरण लेनी पडी।


उरांव जनजाति की भाषा (Launguage of Oraon Janjati)

उरांव जनजाति का प्रमुख भाषा कुड़ुख है| यह भाषा द्रवीण परिवार से संबन्धित है। उरांव जनजाति के कुछ लोग छोटा नागपुर से छत्तीसगढ़ में जशपुर और सरगुजा के पहाड़ी क्षेत्रों में आए। इस जाति के लोग कुड़ुख भाषा के साथ साथ सादरी और हिन्दी भाषा का भी उपयोग करते है। यह भाषा भारत में बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पश्चिमबंगाल एवं झारखण्ड के आलावा बांग्लादेश, नेपाल तथा भूटान में भी बोली जाती है|


उरांव जनजाति का गोत्र (Caste of Oraon Janjati)

उरांव जनजाति या किसी भी जाति में गोत्र का बहुत बड़ा महत्व होता है, क्योंकी विवाह के समय गोत्र ही मायने रखती है। एक ही गोत्र के लोगों को एक परिवार माना जाता है तथा समान गोत्र के साथ विवाह न करने की प्रथा बरसों से चली आ रही है। उरांव जनजाति में भी गोत्र (caste) को माना जाता है, तथा समान गोत्र के साथ विवाह न करने की प्रथा उरांव जनजाति में आज भी चली आ रही है। उरांव जनजाति में विभिन्न प्रकार के गोत्र जैसे:- एक्का (कछुआ), मिंज(मछ्ली), कुजूर(एक प्रकार का फल होता है जो लता (नार) में होता है।), लकड़ा(शेर), टोप्पो(चिड़िया), केरकेट्टा(चिड़िया), खेस्स(धान), किंडो, तिग्गा, किस्पोट्टा(सूअर का पोटा), खलखो, तिर्की, खाखा, बखला, किरो(भेलवा (काजू फल की प्रजाति) एक प्रकार का फल)। उरांव जनजाति में गोत्र को प्राकृतिक चीजों से जोड़ा गया है।


उरांव जनजाति की संस्कृति (Culture of Oraon Janjati):-

उरांव जनजाति एक आदिवासी समुदाय है। जो की गोंड़, कंवर, खैरवार, खड़िया, मुंडा एवं नगेसिया आदि जनजाति के लोंगो के साथ निवास करते है। उरांव जनजाति की संस्कृति, रहन सहन, खान-पान व आभूषण एवं वस्त्र प्रकृति से जुड़ी हुई है।

उरांव जनजाति का रहन सहन:- उरांव जनजाति के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन उनकी संस्कृति से जुड़ी हुई है। इनका घर मिट्टी का बना होता है। इनके घर का छत्त खप्पर का होता है। घर की लिपाई व छबाई मुख्य त्योहार आने पर ही की जाती है। जैसे की ईसाई (उरांव) में दिसम्बर में क्रिसमस में हिन्दूओं या (सौंसार उरांव)में दीपावली में सरहुल, और करमा त्योहार के आने पर अत्यधिक हर्ष उल्लास के साथ घर की लिपाई (गोबर)से और छाबई(थोड़ी सी मिट्टी और गोबर) के साथ किया जाता है। इसके साथ साथ घर की साफ सफाई भी की जाती है। और त्योहार के दिन अपने सुविधा अनुसार घर की सजावट की जाती है। आदिवासी अपने कलाकृति में निपुण होते हैं। घर की महिलाएं मिट्टी से छाबई करते वक्त अपने हाथों के तीन या चार उँगलियों से दीवाल में या किनारे बोर्डर बनाते हुये डिजाइन बनाती है। पहले ब्रश नहीं होता था तो दातुन को चबा कर ब्रश बना लेते या हाथ में छोटा कपड़ा बांध के पोताई कर लेते थे। और चूना या लाल मिट्टी या काली मिट्टी से पोताई की जाती थी।


उरांव जनजाति का पहनावा:- उरांव जाति के लोग साधारण सा कपड़ा पहन कर रहते है। पुरुष प्रधान लोग पहले लूँगी या कपड़े न होने पर लंगोट पहनते थे। महिलाए साड़ी या कभी कभी साड़ी न होने पर लूँगी लपेट कर रहती थी। पहले किसी घर में शादी होती थी तो मोठा साड़ी पहनाया जाता या फिर दिया जाता था। यह साड़ी खादी का बना होता था। और पुरुष प्रधान धोती पहनते। इस जाति में गोदना गोदवाना बहुत ही ज्यादा प्रचलित था। गोदना को ही आजकल के मोर्डेन जमाने में टैटू कहा जाता है। यह प्रथा पहले से ही चली आ रही है। पहले गोदना का अर्थ अपने शरीर की सुंदरता को बढ़ाना होता था। गोदना महिलाओं का शृंगार होता था। इसके अलावा सिल्वर रंग के सिक्के से बने माला जिसे रुपयों का माला कहते है। गिलट, आदि के गहने पहने थे। कर्मा नाच में कभी कभी डूमर फल के मालायें बनाई जाती थी। और अपने गले के शृंगार के रूप में पहनते हैं।


उरांव जनजाति का खान-पान (Food of Oraon Janjati):- उरांव जनजाति की जीवन शैली सामान्य होती है इन लोगों का खान पान प्रकृति मे उपस्थित प्राकृतिक चीजों पर निर्भर है। ये लोग जो खेती करते है और साग सब्जी लगाते हैं सिर्फ उसी के ऊपर निर्भर नहीं रहते है। क्योकि ये जंगलों में रहने वाले एक आदिवासी है। घर में कुछ खाने को नहीं रहता तो ये लोग जंगलो, खेतों ओर नदी नालों में निर्भर होते है। क्योंकि खाना तो खेती करके मिल जायगा लेकिन सब्जी के लिए इन्हे शिकार करना पड़ता है। कंद मूल खा कर पेट भरते। जैसे की शिकार के लिए जंगल जाते वहाँ चूहा, गिलहरी, ख़रगोश आदि मिल जाता था। और कंद मूल कई प्रकार के कांदा , फल जैसे चार, तेंदू, बहरा, किरो (काजू फल की प्रजाति) खजूर, डूमर (अंजीर), बरगद के फल, पीपल के फल आदि। कभी कभी बरसात के समय मछ्ली, केकड़ा, घोंघी, सीपी आदि पकड़ते थे। महिलाए तेल बनाने के लिए डोरी, करंज, कुजूर और कुसुम को एकट्ठा करते और इसका तेल निकलते है। डोरी और कुसुम के तेल को लगाने का काम आता है और करंज और कुजूर का तेल तबीयत खराब हो तो दवाई का काम आता है। कुछ कुछ साग भाजी जंगलो या खेतों से मिल जाती है जैसे फूटकल साग, सरला ये पेड़ों से प्राप्त की जाती है। ये पतझड़ के समय छोटे छोटे पत्तों की कली निकलती है तभी तोड़ा जाता है और लंबे समय तक रखना हो तो सुखड़ी करके रखा जाता है।

इस जाति में शराब का सेवन किया जाता है। महुआ के फूल से शराब बनाई जाती है। खजूर व ताड़ के पेड़ से रस निकाला जाता है उसे ताड़ी कहते है। इसका उपयोग गर्मी के समय लू लगता है तो इसका सेवन करने से ठीक हो जाता है। चावल से रस निकलता है उसे कोसना या हड़िया कहा जाता है। गर्मी में यह पेट को ठंडा रखता है। और ज्यादा पीने नशा हो जाता है। इस जाति में पशुपालन भी की जाती है। जैसे गाय, बैल, बकरी, सूअर, मुर्गा आदि। शादियों या और कुछ कार्यक्रम में इन्ही पशुओं का उपयोग करते है।


उरांव जनजाति का मुख्य त्यौहार (Festivals of Oraon Janjati):- उरांव जनजाति का मुख्य त्योहार सरहुल है। यह त्यौहार चैत के महिने मे मनाया जाता हेैं। इसके अलावा सोहराई (दीपावली), दशहरा, फागुन एवं नवाखाई आदि हैं। इनके कुछ अनुश्ठान शिकार से संबंधित हेें, जो छोटे उत्सव को त्यौहार जेेसे मनाया जाता हेैं। बेेेेसाख में बिसु सिकरोर, ज्येष्ठ में शिकार के लिए फंदो की पूजा होती हैं।


उरांव जनजाति का प्रमुख लोकगीत एवं लोकनृत्य (Folk Song & Dance of Oraon Janjati):-उरांव जनजाति का प्रमुख लोकगीत एवं लोकनृत्य-

लोकगीत- सरहुल, करमा, फाग, एवं सोहहराई आदि प्रमुख है|

लोकनृत्य- सरहुल, करमा एवं विवाह नृत्य प्रमुख है|


उरांव जनजाति के देवी-देवता (Lord of Oraon Janjati):- उरांव जनजाति के प्रमुख देवता धर्मेश (सूर्य) है। इनके अलावा अंधेरिपाटा, पाटराजा, चंडी, गांव देवता को मानते हैं। उरांव जनजाति के द्वारा साल वृक्ष में फूल लगने पर सरना देवी की पूजा करते हैं। uranv में देवी देवता के साथ साथ जादू टोना, काला जादू को भी मानते है। जादू टोना में काले मुर्गे, या बिल्ली या बकरे की बलि दी जाती है।


उरांव जनजातियों में विवाह संस्कार (urao Wedding Ceremony):-

उरांव जनजाति में भी अन्य जनजातियों की तरह ही विवाह प्रथा होती है। इस जनजाति में एक ही जाति के गोत्र में विवाह नहीं की जाती है। क्योंकि उन्हे परिवार माना जाता है। विवाह की रस्म जाति के बुजुर्ग व्यक्तियों की देख रेख में सम्पन्न होती है। ईसाई उरांव में शादी के पूर्व 3 से 7 दिन तक चर्च में शिक्षा दी जाती है। विवाह रस्म चर्च में सम्पन्न होती है एवं रीति रिवाज के साथ की जाती है। इसके अतिरिक्त सहपालयन, ढुकू (घुसपैठ), विनिमय, घरजमाई प्रथा, विधवा, पुनर्विवाह को भी सामाजिक मान्यता दी जाती है। भूतकाल में उराव जनजाति में अविवाहित लडके लडकियां के युवागृह धुमकूडिया हुआ करते थे। परंतु अब युवा गृह का प्रचार बंद हो गया है।


इनकी धार्मिक संस्कृति में एक रस्म मृत्यु की भी होती है। जिसके अंतर्गत किसी की मृत्यु होने पर उसे जमीन पर दफ़न करने का रस्म है। सम्पन्न हिन्दू urao (संसारी उरांव) में शव को जलाने का भी रस्म है। मृत्यु के तीन दिनों के बाद 'तेराही नहावन' हेतु रिश्तेदारों को बुलाया जाता है तथा इसी दिन से मृतक के घर एवं परिवार को शुद्ध माना जाता है। तीन महीने बाद 'गमी' मनाया जाता है। जिसमें परिवार तथा गाँव वालों को भोज दिया जाता है। ईसाई उरांव में मृत्यु के समय पादरी को बुलाया जाता है, जो लोगों एवं मृतक के परिवार वालों को धर्म-उपदेश देता है। तथा पापों का प्रायश्चित कराया जाता है तथा मृतक की आत्मा शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। इसे अंतमलन (अंतिम) संस्कार कहते है।


उरांव जनजाति की कृषि (Agriculture of Oraon Janjati):-

उरांव जनजाति का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। ये लोग स्थानांतरित कृषि करते है। इनकी कृषि को वेवार, दिप्पा व पेंडा आदि नामो से जाना जाता है। ये लोग कृषि करने के लिए जंगल मे आग लगा दिया करते है और जब वर्षा होती है, तो उसमे बीज छिड़ककर वह पर खेती की जाती है। और उसके बाद उस भूमि के बंजर हो जाने पर दूसरे जगह चले जाते है। यही क्रिया आगे चलती रहती है। ये लोग ज्वार, मक्का, चावल, गेहू, कोदो, कुटकी, सन, कपास एवं तिलहन आदि फसलों की खेती करते है। इन लोगो की जंगल पर निर्भरता के कारण जंगल को विशेष आदर व सम्मान देते है। |


महत्वपूर्ण बिन्दु (Important Point about Oraon Janjati):-

  • इसके पूजा स्थान को बगिया कहते हैं।
  • उरांव द्रविण भाषा परिवार की जनजाति है।
  • जादू-टोना एवं देवी-देवता के पुजारी को पाहन कहा जाता है।
  • उरांव जनजाति के युवागृह को धुमकुरिया कहा जाता हैं।
  • उरांव जनजाति के गोत्र (oraon tribe surnames) मे oraon gotra list एक्का, मिंज, कुजूर, लकड़ा, टोप्पो, केरकेट्टा, खेस्स, किंडो, तिग्गा, किस्पोट्टा, खलखो, तिर्की, खाखा, बखला आदि सभी प्रकृति मे उपस्थित चीजों से ली गई है।
  • kujur caste in hindi meaning -कुजूर(एक प्रकार का फल होता है जो लता (नार) में होता है।) यह अक्सर जंगलों में पायी जाती है।
  • kispotta meaning in hindi किस्पोट्टा(सूअर का पोटा(आंत) सूअर को कुड़ुख भाषा में किस्सी कहा जाता है।
  • tigga meaning in hindi तिग्गा मतलब बंदर होता है।
  • kerketta meaning in hindi केरकेट्टा भी एक प्रकार की पक्षी होती है।

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