इस पोस्ट मे कोंध जनजाति (kondh Tribe Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा-बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी-देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।
kondh Tribe Overview | |
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जनजाति का नाम | कोंध जनजाति |
निवास स्थान | छत्तीसगढ़, आन्ध्रप्रदेश, ओडिशा |
कोंध जनजाति की उपजाति | डॉगरिया, कुरिया, पेगा, झुरिया, जामिया, सीतहा आदि उपजातियां पाई जातीहै। |
कोंध जनजाति का गोत्र | इनके प्रमुख गोत्र बच्छा,छत्रा, हीकोका, केलका, कोंजावा, मंदीगो, नरसिंहा आदि है। |
कोंध जनजाति की बोली | कोंधी(कुई) |
कोंध जनजाति का इतिहास (History of Kondh Janjati):-
कोंध जनजाति के इतिहास के बारे मे कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है, ऐसा माना जाता है की कोंध जनजाति की उत्पत्ति द्रविड़ शब्द "कोंड" से हुई है जिसका अर्थ "पर्वत" है। कोंध जनजाति के लोग पर्वतीय क्षेत्रों मे रहने वाले है। पर्वतीय क्षेत्रों में रहने के कारण ही इन्हे कोंध कहा गया। कोंध के अलावा इन्हे खोंड़, कांध और कांधिया भी कहा जाता है। कोंध जनजाति मुख्य रूप से उड़ीसा और आंद्रप्रदेश के निवासी है, जो कि लगभग 200 वर्षों पहले उड़ीसा से आकर छत्तीसगढ़ में बसे। कोंध जनजाति एक प्रमुख आदिवासी समुदाय है जो अपनी संस्कृति, भाषा-शैली एवं परंपराओं के लिए प्रसिद्ध हैं। इनकी जनजाति भी मुंडा जनजाति एवं उरांव जनजाति की तरह छत्तीसगढ़ के अलग-अलग स्थान जैसे रायपुर, दुर्ग, कोरबा, राजनांदगांव, बस्तर, बीजापुर, रायगढ़, जशपुर और दंतेवाड़ा में निवास करते हैं।
कोंध जनजाति की प्रमुख भाषा एवं बोली (Main language of Kondh Janjati)
कोंध जनजाति की कोई मुख्य भाषा नहीं है। इनकी बोली कोंधी है, जिसे कुई बोली भी कहा जाता है। यह उनकी स्थानीय बोली है जो उनकी संस्कृति, समुदाय, और संवादों को व्यक्त करने के लिए प्रयोग मे लाई जाती है। कोंधी भाषा उनके संवादों, गीतों, कहानियों, एवं परंपरागत संगीत में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
कोंध जनजाति की संस्कृति (Culture of kondh Janjati):-
कोंध जनजाति के लोग बिंझवार जनजाति एवं कंवर जनजाति के साथ निवास करते है। इनके घर समान्यतः मिट्टी के, छत्त खपरैल का, एवं बांस या लकड़ी की बनी होती है। घर मे आनाज़ रखने की कोठी होती है। इसके साथ-साथ अन्य सामाग्री जैसे धान कूटने का मूसल, अनाज़ पीसने का जाता, मिट्टी का चूल्हा, पीतल के बर्तन, कृषि उपकरण, वाद्य यंत्र, मछ्ली पकड़ने का जाल, शिकार के लिए तीर धनुष एवं भाला आदि इनके Traditional हथियार है। इनके वस्त्र विन्यास में पुरुष पंछा (छोटी धोती) और बंडी पहनते है। और महिलाएं लुगरा पहनती है। महिलाएं अपने सुंदरता के लिए अपने हाथ, पैर, ढुड़ी, माथे, आदि पर गोदना गुदवाती है। महिलाएं नाक में फुल्ली, कान में खिनवा, गले में सुरड़ा, रुपया या काँच के मानकों की माला, हाथों में चूड़िया, एवं पटा आदि गहने पहनती है। ये सभी गहने गिलट या नकली चाँदी, और पीतल की होती है।
अँग्रेजी शासन के आने से पहले कोंध जनजातियों के लोगों मे "नरबलि" देने की एक प्रथा का प्रचलन था जिसके अंतर्गत इंसानों की बलि दी जाती थी। किसी भी जनजाति मे बलि कि प्रथा मुख्य रूप से अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए एक रूढ़ प्रथा के रूप मे प्रचलित है। कोंध जनजाति के लोगों मे भी अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए ये प्रथा प्रचलित थी। अंग्रेज़ शासन के आने के बाद इस प्रथा को बंद किया गया। तथा नरबलि के स्थान पर अब पशु जैसे भेड़, बकरी या बकरा (खस्सी), सूअर आदि की बलि देने की प्रथा प्रचलित है।
कोंध जनजाति का मुख्य भोजन अधिकतर स्थानीय अनाज, में जौ, चावल, रागी और मक्का शामिल होते है। कोदो की पेज, बासी भात, दालें ( उड़द, कुरथी, और मूंग की दाल) आदि और कुछ मौसमी साग सब्जियां, कंद मूल आदि होते है , इनका वन्य जीवन सब्जियों और फलों पर आधारित होता है। इनका भोजन आमतौर पर , जो छत्तीसगढ़ का स्थानीय भोजन होता है। कोंध समुदाय के लोग पर्यावरण के साथ संबंधित रहते हैं और विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में मांस, मछली और अन्य जंगली खाद्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं। उनका पेय पदार्थ अक्सर छत्तीसगढ़ के स्थानीय द्रव्यों पर आधारित होता है, जैसे की तांबूल (तांबाकू और पान), फूला (सार्दूल), और महुआ का रस आदि होता है।
कोंध जनजाति की मुख्य खेती (Main farming of Kondh Janjati):-
कोंध जनजाति का प्रमुख आधार कृषि है। उनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य स्रोत खेती, वन्य जीवन, और चारागाह होता है। कोंध समुदाय के लोग मुख्य रूप से खेती करते हैं, जिसमें धान, कोदो, मड़िया, मक्का,ज्वार, बाजरा, उड़द, चना, और दलहन जैसी फसलें शामिल होती हैं। वे अपनी खेती में विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हैं। इनमें वन्य फल, सब्जियां, और औषधीय पौधे भी उनकी खेती का हिस्सा होते हैं। वन्य फलों का संग्रह करना और उन्हें खाद्य स्रोत के रूप में उपयोग करना भी उनकी गरीबी को कम करने में मदद करता है। जंगली कंदमूल एकत्र कर खाते हैं| लाख, तेन्दु पत्ता, चार (चिरोंजी) तेन्दु, महुआ, शहद एकत्र कर बेचते हैं। पूर्व में पेन्दा खेती तथा शिकार कर आश्रित थे। वर्तमान में कृषि तथा कृषि मजदूरी करते हैं। इसके अलावा, चारागाह (पशु पालन) भी कोंध समुदाय के लिए महत्त्वपूर्ण है। वे गाय, भैंस, बकरी, और मुर्गा पालते हैं, जो दूध, घी, गोबर, और मांस का स्रोत होते हैं। चारागाह से प्राप्त उपज का उपयोग अपने रोजगार और आर्थिक स्थिति में सुधारने के लिए करते है। खेती, चारागाह, और वन्य जीवन से जुड़ी उपज उनकी आर्थिक स्थिति में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं
कोंध जनजाति का प्रमुख त्यौहार (Major festival of Kondh Janjati):-
कोंध जनजाति के लोग कई प्रमुख त्योहार मनाते हैं जो उनकी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनके समुदाय की एकता और खुशी का प्रतीक हैं। इनके प्रमुख त्योहार दशहरा (चावल जात्रा) नया चावल खाया जाता है, इसे नवाखानी भी कहते हैं, अगहन जात्रा तथा चैत्र जात्रा (माहुल जात्रा) नया महुआ खाया जाता है। देवी-देवता एवं पूर्वजों की पूजा दशहरा के दिन की जाती है। और दीपावली, होली आदि त्योहार मनाई जाती है। इनके अलावा हरियाली पर्व (यह पर्व बरसात के मौसम में मनाया जाता है और खेतों के लिए खुशहाली और फसल की उन्नति की कामना के साथ मनाया जाता है।), छबी पर्व: (यह त्योहार बारिश के समय मनाया जाता है। खेतों की तैयारी और उनकी देखभाल के लिए एक महत्त्वपूर्ण अवसर होता है।) आदि त्यौहारे मुख्य हैं। त्यौहारों को कोंध जनजाति के लोग अपने जीवन के धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मान्यताओं का प्रतीक मानते हैं।
कोंध जनजाति का प्रमुख लोकगीत एवं लोकनृत्य (Major folk song and folk dance of Kondh Janjati):-
कोंध जनजाति का प्रमुख लोक नृत्य विवाह नृत्य, होली नृत्य, जात्रा नृत्य आदि होते है। यह नृत्य उनकी सांस्कृतिक धरोहर का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है। उनके लोक नृत्य में विविधता, रंगमंच का जीवंत अनुभव, और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट संगम होता है। उनके संस्कृति, परंपराओं, और जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन नृत्यों में सांस्कृतिक विरासत की गहरी भावना और समाजिक संदेश छिपे होते हैं। ये नृत्य ग्रामीण जीवन, प्राकृतिक सौंदर्य, जंगली जीवन, और उनके संबंधों को दर्शाते हैं। कुछ कोंध जनजाति के प्रमुख नृत्य हैं जैसे कि "पारोती" और "घूमरिया"। इन नृत्यों में समृद्ध रंग-बिरंगे पोशाक, ध्वनि, ताल, और नृत्य तकनीक का उपयोग होता है। इनके नृत्यों में गतिशीलता, उत्साह, और जीवंतता होती है जो दर्शकों को मनोरंजन करती हैं और समृद्ध संस्कृति का अनुभव कराती हैं। ये नृत्य समाज में एकता, सामरस्य, और सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा देते हैं।
लोकनृत्य- कोंध जनजाति के लोक गीत में विवाह अथवा नृत्य के अवसर पर लोकगीत गाया जाता है । वर्तमान में भजन, व फाग भी गाया जाता है। ये गाने उनके सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक अनुभवों को व्यक्त करते हैं। लोक गीत में बारिश, प्राकृतिक सौंदर्य, जीवन की अनुभूतियाँ, प्रेम संगीत आदि। ये गीत सामाजिक संदेशों, धर्मिक कथाओं, और स्थानीय परंपराओं को अभिव्यक्ति करते हैं। कोंध जनजाति के कुछ प्रमुख लोक गीत होते हैं जैसे कि "हुड़कना गीत", "घूमरिया", "चंदनी चोखा", "जानमा बारी", "मुंदरिया", और "तोर बाना दिल"। ये गीत उनकी संगीतमय परंपराओं, स्थानीय धुनों, और लोक कथाओं को संजीवनी देते हैं। इनमें अनुभवों की गहराई, सामाजिक संदेश, और उनकी संस्कृति की छाया महसूस होती है। कोंध जनजाति के लोक गीतों में संगीत, ताल, और भावनाओं का खूबसूरत संगम होता है जो उनकी सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाता है और समृद्ध करता है।
कोंध जनजाति के प्रमुख देवी-देवता (Gods and Goddesses of Kondh Janjati):-
कोंध जनजाति के लोग विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। इनके प्रमुख देव देवता बेला या बुरापेंजू (सूर्य) तथा इनकी पत्नी तारी माता, धरती माता, शीतला माता, आदि है।
धराणीपुत्र गोंड: कोंध जनजाति अपने परंपरागत धाराणीपुत्र गोंड को पूजते हैं और इसे अपने समुदाय के रक्षक और प्रमुख देवता मानते हैं।
शिव-पार्वती:. शिव-पार्वती की पूजा भी कोंध जनजाति में प्रमुख होती है। शिव उनके लिए उत्कृष्ट देवता माने जाते हैं। गाँवों और समुदाय के कई स्थानों पर मंदिरों में पूजा जाता है।
हनुमान: हनुमान जी को भी कोंध जनजाति के लोगों में महत्त्वपूर्ण माना जाता हैं। इनके अलावा, इस जाति के लोग नदी, पर्वत, नाग, आदि को भगवान मान कर पुजा करते है। उनकी स्थानीय परंपराओं, रीति-रिवाज़ और सांस्कृतिक विशेषताओं से जुड़ी होती हैं। कोंध जनजाति के लोग अपने धार्मिक अनुष्ठानों में विशेषता और भक्ति का अहसास करते हैं और इसे अपने सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।
कोंध जनजाति मे विवाह प्रथा (Merriage of kondh Janjati):-
कोंध जनजाति में विवाह के लिए मामा या बुआ की लड़की को प्राथमिकता देते हैं। कन्या के पिता को चावल, दाल, तेल, हल्दी, शराब, बकरा या सुअर तथा वधु के कपड़े, १00 से 500 रूपये तक नगद सूक भरना देते हैं। पहले इनमें लड़कों के लिए धांगड़ा घर तथा लडकियों के लिए धांगड़ी घर (युवागृह) गांव के किनारे में पाया जाता था। जहां गांव के युवा 'लड़के, लड़कियां एकत्र होकर नाचते गाते थे तथा रात्रि विश्राम करते थे।
कोंध जनजतियों के समाज में विभिन्न परिवारों और समुदायों में विवाह की अलग-अलग प्रक्रियाएं और रीति-रिवाज होते हैं। इनकी जनजाति में कई के प्रकार विवाह होते हैं जो समाज में मान्यताओं और संस्कृतियों के अनुसार होते हैं। कोंध जनजाति में विवाहों की प्रक्रिया और विवाह के तरीके उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं, परंपराओं और समाजिक नियमों पर आधारित होते हैं। विवाहों की व्यवस्था में कुछ प्रमुख विधियाँ होती हैं जो इस समाज में प्रचलित होती हैं:
गोत्र विवाह: यह एक ऐसा विवाह है जिसमें दो व्यक्तियों की गोत्र में कोई संबंध नहीं होता।
सामाजिक विवाह: इसमें समाज के अनुसार विवाह होता है जो किसी निश्चित वर्ग या समाजिक समूह के अनुसार नियमित होता है।
प्रेम विवाह : यह विवाह वह होता है जो व्यक्तिगत चुनाव पर आधारित होता है और प्रेम या भावनाओं के आधार पर होता है।
सामूहिक विवाह: कुछ समाजों में एक ही समय पर कई विवाह हो सकते हैं और इसे सामूहिक विवाह कहा जाता है।
बिजा विवाह: इसमें विवाह दो परिवारों के बीच किया जाता है जो किसी विशेष बिजा या गोत्र से संबंधित नहीं होते हैं।
परिणय विवाह: यह विवाह परंपरागत होता है जिसमें प्रेमी-प्रेमिका का निकाह होता है, जबकि उनके परिवारों की सहमति नहीं होती।
अनुलोम विवाह: इसमें स्त्री एक ऊचे वर्ण के पुरुष से विवाह करती है।
प्रतिलोम विवाह: इसमें पुरुष एक निम्न वर्ण की स्त्री से विवाह करता है।
साम्य विवाह: इसमें दोनों पार्टनर एक ही वर्ण और वर्ग से होते हैं।
अंतर्जातीय विवाह: इसमें दोनों पार्टनर अलग-अलग समाजों या जातियों से होते हैं।
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