बिरहोर जनजाति | Birhor Tribes in Hindi

Birhor Tribes

इस पोस्ट मे बिरहोर जनजाति (Birhor Tribes Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।


Birhor Tribes Overview
जनजाति का नाम बिरहोर जनजाति
बिरहोर जनजाति की उपजाति बिरहोर
बिरहोर जनजाति का गोत्र सोनवानी, बघेल, सोनियल, हाडु, कछुआ, छतोर, मूरिहार, टोपवार, करकेटा, हेम्ब्रम, इंदवार, गीध, गोलवार, सिंगपुरिया, साबर, सवरिया, भुईया
निवास स्थान भारत में मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, एवं छत्तीसगढ़ में रायगढ़ जिले के लैलुंगा, तमनार व धरमजयगढ़, कोरबा जिला के पोंडी, पाली व उपरोड़ा, बिलासपुर जिला के मस्तूरी व कोटा, जशपुर जिला के बगीचा, दुलदुला, पत्थलगाँव व कंसाबेल
बिरहोर जनजाति की भाषा एवं बोली बिरहारी

बिरहोर विशेष पिछड़ी जनजाति (Birhor janjati)- खारिया जनजाति की तरह बिरहोर जनजाति भी भारत के एक प्रमुख जनजातियों मे से एक है, जो कि भारत में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड आदि राज्यों में पाये जाते है। बिरहोर छत्तीसगढ़ की एक अल्पसंख्यक विशेष पिछड़ी जनजाति है जो छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के लैलुंगा, तमनार व धरमजयगढ़, कोरबा जिला के पोंडी, पाली व उपरोड़ा, बिलासपुर जिला के मस्तूरी व कोटा, जशपुर जिला के बगीचा, दुलदुला, पत्थलगाँव व कंसाबेल आदि जगहों में पाये जाते है। इनकी ज्यादा संख्या नहीं है। 2011 के जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 3104 है।


बिरहोर जनजाति का इतिहास (History of Birhor Tribes):-

बिरहोर जनजाति की इतिहास में कोई एतेहासिक नहीं है किन्तु यह माना जाता है कि यह खैरागढ़ के कैमूर पहाड़ी से इस देश में आए है। बिरहोर दो शब्दों से मिलकर बना है बिर और होर। जिसका संबंध जंगल और आदमी से है बिर का अर्थ है जंगल और होर का अर्थ है आदमी झाड़ी काटने वाला।


इस जनजाति में उपजाति पाये जाने का उल्लेख नहीं मिलता किंतु जो घुमन्तु जीवन बिताते हैं बिरहोर दो प्रकार के होते है- पहला जिसे उथलू कहते है ये एक प्रकार के घुमंतू होते है जो एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते रहते है। और अपना जीवन यापन करते रहते है। दूसरा उथलू जो अपने स्थाई स्थान पर ही निवास करते हैं जाघिस कहते है इस प्रकार के लोग एक ही जगह पर अपना झोपड़ी बना लेते है। और अपना जीविका चलाते है।


बिरहोर जनजाति की भाषा (Birhor Tribe Launguage)

बिरहोर जनजाति बिरहारी भाषा बोलते है।


बिरहोर जनजाति की रहन सहन (Costume of Birhor Tribes)

birhor janjati के लोग साधारण जीवन यापन करते है इन का झोपड़ी घास फूस से बने पहाड़ियों के किनारे जंगलो में होते है। लेकिन अब विकासशील देश बन गया है जिससे गरीबों व पिछड़ी जाति ही क्यो न हो सभी को पक्का घर का निर्माण करने हेतु भारत सरकार द्वारा बनाई जा रही है। इस जाति में युवाओं कि रहने की जगह गीतिओरा कहलाती है।


Birhor जाति के पुरुष सामान्यतः लंगोटी या छोटा पंछा पहनते हैं। स्त्रियाँ लुगड़ा पहनती हैं। स्त्रियाँ हाथ में पीतल, गिलट आदि का “पटा” या ऐंठी, गले में माला, कान में खिनवा, नाक में फूली पहनती है।


बिरहोर जनजाति की कृषि (Agriculture Techniques of Birhor Tribes)

Birhor janjati में धान की खेती को ज्यादा महत्त्व देते है खेती के साथ -साथ बांस की टोकरी, नार वाले पौधे से रस्सी और जंगलो से तेंदू के पत्ते व फल, चिरोंजी, महूआ आदि का संग्रह करके बेचती है जिससे अपना घर चला सके। ये लोग पशुपालन भी करते है जैसे; बकरी, गाय और मुर्गी। और जब इनका खाद्य पदार्थ (धान-चावल) खत्म हो जाता है तो ये जंगल से नकौआ कांदा, डिटे कांदा, पिठास कांदा या लागे कांदा खोदकर लाते हैं। इसे भूनकर या उबालकर खाते हैं। ये सालेहा व पोटे नामक वृक्ष की लकड़ी से ठढोलक, बेहंगा आदि बनाकर बेचते हैं। बिरहोर जनजाति के लोग कृषि कार्य में संलग्न होते है। बिरहोर आदिम जनजाति के लोगों का मुख्य कार्य मोहलाईन वृक्ष छाल से रस्सी बना कर बेचना इनका आजीविका का साधन है। बिरहोर आदिम जनजाति के लोग मोहलाईन वृक्ष छाल से रस्सी बनाकर बेचते थे। वर्तमान में सूती तथा प्लास्टिक के निवाड़ के प्रचलन से रस्सी का काम समाप्त हो चुका है। इस जनजाति के लोग वनोपज संग्रह तथा बांस बर्तन निर्माण पर ही निर्भर हैं।


बिरहोर जनजाति की त्योहार (Festivals of Birhor Tribes)

बिरहोर जाति के लोग कई त्योहार मनाते है। जैसे, ‘नवाजोम’ जिसमे नया चावल खाई जाती है। सोहराई, करमा, नवाखाई, दशहरा तथा फगुआ इसके अलावा चउली हेमब्रम , नगुरिया , माहाली, गिधिकुल और ‘देसाई’ आदि इनके मुख्य है।


बिरहोर जनजाति की देवी देवता (Lord of Birhor Tribes)

बिरहोर जनजाति का प्रमुख देवता सिंगबोंगा (सूर्य देव) है शिकार करने से पहले सिंगबोंगा से प्रार्थना की जाती है इसके अलावा बुड़ी माई व देव माई, मरी माई, पाट देव, डोंगर देव आदि बिरहोर की मातृ देवी है। बिरहोर जनजाति में ‘बुरु बोगस’ जो कि ऊथलू बिरहोर इसे ओरा बोगस कहते है। क्योकि इस देवता में एक विशेष शक्ति होती है। birhor janjati के लोग देवी देवता को मानने के साथ-साथ मंत्र-तंत्र तथा जादू-टोना को भी मानते है। इनमें जड़ी-बूटी को जानने वाला 'पाहन' कहलाता है।


बिरहोर जनजाति की लोक नृत्य व संगीत ( Folk Song and Dance of Birhor Tribes)

बिरहोर जनजाति का प्रमुख नृत्य लागरी, डोंग, करमा, फगुआ व बिहाव नाच है। लोक गीतों में करमा गीत, फगुआ गीत आदि। बिरहोर जनजाति में उपयोग होने वाले प्रमुख वाद्य यंत्र मादर, तुमदा (ढोल), तमक (नगाड़ा), तिरियों (बांसुरी), ढपली आदि हैं।


बिरहोर नृत्य को "चहु दाण्ड" या "चहु दंड" (Chahu Dand Dance) के नाम से जाना जाता है, यह नृत्य बिरहोर समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

  • प्रकार: चहु दाण्ड नृत्य एक प्रमुख पौराणिक नृत्य होता है जो बिरहोर समुदाय के लोग अपनी सांस्कृतिक एवं धार्मिक धरोहर का हिस्सा मानते हैं। इस नृत्य का नाम "चहु दाण्ड" है क्योंकि इसमें चार लोग मिलकर चार छड़ियां (दाण्ड) पकड़कर नृत्य करते हैं।
  • कार्यक्रम: चहु दाण्ड नृत्य आमतौर पर विशेष धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर प्रदर्शित किया जाता है, जैसे कि जगर, दुर्गा पूजा, और अन्य पौराणिक त्योहारों में।
  • रंगीनता: इस नृत्य के प्रमुख चरण रंगीन और जीवंत होते हैं, और नृतक अपने रूप, वस्त्र, और उपकरणों के साथ चमकते हैं।
  • महत्व: चहु दाण्ड नृत्य बिरहोर समुदाय की विविधता, साहित्य, और धर्म को प्रकट करता है, और इसका महत्वपूर्ण स्थान है उनकी सांस्कृतिक भूमि में। यह नृत्य उनकी इतिहास, धर्म, और समाज के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

चहु दाण्ड नृत्य बिरहोर समुदाय के लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसके माध्यम से वे अपने धर्म, सांस्कृतिक मूल्यों, और परंपराओं का संरक्षण करते हैं।


बिरहोर जनजाति की विवाह संस्कार (Wedding Ceremony of Birhor Tribes)

बिरहोर अपने ही गोत्रों में विवाह करते है। विवाह की रस्म बिरहोर जाति का ढेड़ा (पुजारी) संपन्न कराता है। इसके अतिरिक्त ढूकू, उढ़रिया, गोलत (विनिमय) विवाह भी पाया जाता है। विधवा तथा विवाहिता को दूसरे व्यक्ति के साथ पुनर्विवाह की अनुमति है| इनमे क्रयविवाह सर्व श्रेष्ठ मानी जाती है। इसी प्रकार कई ऐसे विवाह संस्कार है जैसे; बहूविवाह, हठ विवाह, सेवा विवाह, गोलट और पुनर्विवाह आदि।


बिरहोर जनजाति के जीवन चक्र में प्रसव के वक्‍त स्त्री को अलग झोपड़ी में रखते हैं । कुसेरू दाई जो इन्हीं की जाति की होती है, प्रसव कराती है।


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