इस पोस्ट में बिंझवार जनजाति (Binjhwar Tribes Lifestyle) के बारे में, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे में जानकारी दी गयी है।
Binjhwar Tribes Overview | |
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जनजाति का नाम | बिंझवार जनजाति |
बिंझवार जनजाति की उपजाति | (a) बिंझवार (b) सोनझरा (c) बिरझिया (d) बिझिया। |
बिंझवार जनजाति के गोत्र | पंडकी, लोहा, बाघ, डोड़का, नाग, धान, सोनवानी, सरई, भैंसा, भौरा, सेमी, ताड़, माझी, कमलिया आदि इनके प्रमुख गोत्र हैं। |
निवास स्थान | छत्तीसगढ़ में कोरबा, जांजगीर - चांपा, रायगढ़, बिलासपुर, रायपुर, व महासमुंद |
बिंझवार जनजाति की भाषा एवं बोली | छत्तीसगढ़ी बोली, लरिया, बिंझवारी, सादरी, हिन्दी व उड़िया |
कुल जनसंख्या | 2001 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 6616596 और 2011 की जनगणना के अनुसार 119718 |
बिंझवार जनजाति का इतिहास(History of Binjhwar Tribes):-
बिंझवार जनजाति का कोई एतेहासिक प्रमाण नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है की इसकी उत्पत्ति जगन्नाथ मंदिर के दरवाजे से हुई है जो बारह भाई बेतकार एवं विंध्यवासिनी के बारह पुत्र थे जो तीर धनुष चलाने में निपुण थे। बिंझवार का ''बिंझ'' बींधना = मतलब ( तीर ) और ''वार'' धनुष (चलाना)। इससे यह अंकित होता है की इसकी उत्पत्ति तीर धनुष से हुआ है। और यही से बिंझवार कहलाए जाने लगे।
बिंझवार जनजाति छत्तीसगढ़ में कोरबा, जांजगीर - चांपा, रायगढ़ , बिलासपुर , रायपुर , कोरिया, बलरामपुर, सुकमा व महासमुंद आदि जिलों में पाये जाते है। 2001 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 6616596 थी। और 2011 की जनगणना के अनुसार 119718 है।
बिंझवार जनजातियों की भाषा व बोली(Launguage of Binjhwar Tribes)
बिंझवार जाति के लोग छत्तीसगढ़ी बोली, लरिया, बिंझवारी, सादरी, हिन्दी व उड़िया बोलते है।
बिंझवार जनजातियों का पहनावा एवं आभूषण (Costume of Binjhwar Tribes):-
छत्तीसगढ़ में सामान्य रूप से महिलाओं का आभूषण पीतल, चाँदी, गिलट, काँच , प्लास्टिक व तांबा आदि की बनी हुई होती है जैसे - सांटी, नथनी, बिछिया, लच्छा, तोड़ा, करधन, ऐंठी, माँटी, बाहु पर पहुंची, नागमोरी, रुपिया माला, ढरकअवा, मोर के पंख आदि आभषणों को पहनते हैं। इस जाति के लोग गोदना गोदवाते है। गोदना इनका मुख्य आभूषण है। इस जाति के लोगों का पहनावा पुरुष लंगोट, लूँगी, पटकू या गमछा आदि पहनते है और महिलाएं लुगरा (साड़ी)
बिंझवार जनजातियों का रहन-सहन व खान-पान (Food of Binjhwar Tribes):-
बिंझवार जनजाति (caste)के लोगों का जीवन साधारण होता है। प्रकृति व खेती पर निर्भर रहते है। इन का घर मिट्टी व खप्पर का होता है, जिसका छत्त लकड़ी का बना होता है। घरों की लिपाई व छबई गोबर से की जाती है। इनके घरों में अनाज रखने की जगह कोठी कहलाता है। इनके घर में धान कूटने के के लिए ढेकी, व अन्य सामग्री जैसे मूसल, जाता (दाल व गेंहू पीसने के लिए) मिट्टी का चूल्हा, होता है। बिंझवार जनजाति का मुख्य भोजन छत्तीसगढ़ का सामान्य भोजन जैसे- चावल (भात), सब्जी (साग ), चीला (चावल आटे की बनी हुई रोटी), त्योहार में बनाई जाने वाली रोटी- खुरमी, थेटरी, कुसली (गुजिया ), बरा, सोहारी (चावल आटे की बनी हुई पूड़ी), आदि व्यंजन खाते हैं।
बिंझवार जनजातियों का कृषि (Agriculture of Binjhwar Tribes):-
इनका आर्थिक जीवन कृषि पर निर्भर है खेती के लिए धान, मक्का, तिवरा-अलसी, कोदो, चना-अरहर, उड़द आदि बोते है। बिंझवार जनजाति लोग बांस से टोकरी बनाते है। जंगलों में शिकार व कंदमूल, गर्मी के दिनों में खेतों से कई प्रकार के जंगली साग भाजी व बरसात के दिनों में मछ्ली पकड़ते है। इन का जीवन प्रकृति पर निर्भर है जंगलों से साल के बीज़, महुआ, चार, बहेरा, तेंदू के फल व तेंदू पत्ता एकट्ठा करके पास के बाज़ार में बेचते है। वनों से लकड़ी भी एकट्ठा करते है।
बिंझवार जनजातियों का त्यौहार(Festivals of Binjhwar Tribes):-
बिंझवार जनजाति के लोग सामान्य त्योहार जैसे - होली, दशहरा, दीपावली और छत्तीसगढ़ की ख़ास त्योहार जैसे- पोला, हरेली, नवाखानी, आदि त्योहार मनाते है। बिंझवार जाति में मेला व त्योहार अधिक महत्व होता है।
बिंझवार जनजातियों का लोकगीत एवं लोकनृत्य (Folk Song and Dance of Binjhwar Tribes):-
बिंझवार जनजाति के लोग करमा नृत्य करमा पूजा में, होली में रहस, बिहाव नृत्य और सुआ नाच आदि नृत्य करते है। बिंझवार जनजातियों का लोकगीत प्रमुख सुआ गीत, करमा, ददरिया, रहसगीत, बिहाव गीत, फाग, रामधुनी आदि इनके प्रमुख लोक गीत है।
बिंझवार जनजातियों के देवी-देवता (Lord of Binjhwar Tribes):-
इनके धार्मिक जीवन में मानने वाले प्रमुख देवी - देवता ठाकुरदेव, देवी बूढ़ी माई, कंकलिन माता, दुल्हा देवता, भैंसासुर, घटवालिन, सतबहिन, साहड़ा देव, बूढ़ादेव, करिया धुरवा आदि को मानते है। इसके अलावा काला जादू-टोना, भूत -प्रेत आदि में विश्वास करते है। बीमारियों के उपचार भूतप्रेत तथा जादू-टोना को दूर करने का कार्य इनका झाखर (गुनियां) करता है। इस जाति में जानवरों की बलि (बकरा, मुर्गा) की दी जाती है।
दूल्हा देव - नवाखाई व हरियाली की पूजा।
ठाकुर देव - गाँव की सलामती व हरेली पूजा।
करिया घुरवा - पीपल पेड़ में निवास माना जाता है। व गाँव को जादू टोना के प्रकोप से बचाने के लिए।
कंकलिन माता - मनुष्य और पशु में होने वाली बीमारी से बचने के लिए पूजा।
साहड़ादेव - जानवरों की सलामती के लिए।
भैंसासुर - अन्न उपज के लिए पूजा।
सतबहिनी - नीम पेड़ के नीचे निवास माना जाता है। बच्चों को भूत प्रेत से बचाने के लिए।
बिंझवार जनजाति की विवाह प्रथा(Wedding Ceremony of Binjhwar Tribes):-
बिंझवार जनजाति में पेहू विवाह, पुनर्विवाह, उदरिया, ढुकूविवाह, गोलत (विनिमय), गुरावट, राजीख़ुशी, घरजिया(घर जमाई ) सेवा विवाह, घुसपैठ, विधवा, देवर भाभी पुनर्विवाह आदि की जाती है। विवाह के अवसर पर वधू के पिता को वर के पिता चावल, दाल, गुड़, तेल, हल्दी, नारियल, शराब व नगद रूपये सूक भरना के रूप में देता है।
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