इस पोस्ट मे कोरवा जनजाति (Pahadi Korwa Tribes Lifestyle) के बारे में, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओं के बारे में जानकारी दी गयी है।
Pahadi Korwa Tribes Overview | |
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जनजाति का नाम | पहाड़ी कोरवा जनजाति |
कोरवा जनजाति की उपजाति | गुलेरिया, मुंडा, हूहर, हरिल, मुरा और पहाड़ी। |
निवास स्थान | पहाड़ी कोरवा जनजाति भारत के मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार आदि राज्यों में पाये जाते है। और छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा, रायगढ़ बलरामपुर आदि जिलों में पाये जाते है। |
कोरवा जनजाति की भाषा एवं बोली | कोरवा और कोडकु कुछ लोग स्थानीय भाषा भी बोलते है। |
कोरवा जनजाति का गोत्र | इनके प्रमुख गोत्र - हसडा, इड़गो, मुंडी, सामंत, एदमे, हसदा, सोनवाणी, भूदिवार, बिरबानी, मुड़िहार, फरमा, समाउरहला, गोणु, बंडा और इदिंवार आदि है। |
कुल जनसंख्या | लगभग 40,000 |
पहाड़ी कोरवा जनजाति (pahadi korwa janjati)- यह एक प्राचीन जनजाति है कोरवा जनजाति उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार आदि राज्यों में पाये जाते है। कोरवा जनजाति छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा, रायगढ़ बलरामपुर आदि जिलों में पाये जाते है। जनसंख्या कम होने के कारण इस जाति (caste) को विशेष पिछड़ी जनजाति में रखा गया। जनगणना के अनुसार वर्ष 2005-6 इनकी जनसंख्या 34122 था लेकिन वर्तमान में इन की जनसंख्या बढ़कर 40 हजार हो गयी है।
पहाड़ी कोरवा जनजाति का इतिहास (History in korwa Tribes):-
कोरवा जनजाति का इतिहास में ऐसा माना जाता है, कि इस जाति के दो मत दिये गए है पहला वनवास काल के समय भगवान राम और माता सीता खेत से गुजर रहे थे, तभी उन्होंने एक पुतले को देखा जो कि फसल को पशु-पक्षियों से बचाने के लिए रखा गया था उस पुतले में धनुष रख दी, माता सीता ने भगवान राम से उस पुतले को मनुष्य में बदलने को कहा। उसके बाद भगवान राम ने उस पुतले को मनुष्य में बदल दिया। उसी मनुष्य को कोरवा जाति का पूर्वज मानते है। दूसरा शंकर भगवान ने कइला और बाला पर्वत के मिट्टी से एक मनुष्य का निर्माण हुआ जिसका नाम घूमा था। उसके बाद दो नारी सिद्धि और बुद्धि का निर्माण हुआ। फिर कइला और सिद्धि कि शादी हुई जिसके तीन संतान कोल, कोरवा और कोड़ाकू। कोरवा से दो पुत्र एक जो जंगल काट कर खेती करने लगा दहिया कोरवा कहलाया। दूसरा जो स्थायी रूप से खेती किया डिहारी कोरवा कहलाया। जंगलों व पहाड़ी इलाक़ो में रहने के कारण इन्हे 'पहाड़ी कोरवा' भी कहा जाता है। कोरवा अन्य नामों से भी जाना जाता है जंगलों रहने के कारण आस पास के आदिवासी "वानैला" पुकारते है और थोड़ा बहुत खेती करने के कारण इन्हे 'वानगरिया" पुकारते है।
पहाड़ी कोरवा जनजाति की भाषा (Korwa Tribes Launguage)
कोरवा जनजाति के लोग कोरवा और कोडकु तथा कुछ लोग स्थानीय भाषा भी बोलते है।
पहाड़ी कोरवा जनजातियों का वस्त्र एवं आभूषण (pahadi korwa tribe Costume):-
कोरवा जनजाति की महिलाए लुगड़ा व गिलट के कुछ गहने पहनते है जैसे; हाथ में कड़े, एंठे, नाक में नथनी, कान में लकड़ी व गिलट के आभूषण पहनते है। पुरुष बंडी व लंगोटी पहनते है।
कोरवा जनजातियों खान-पान व रहन सहन (pahadi korwa tribe of Food):-
पहाड़ी कोरवा जनजाति की सामाजिक विशेषताएं सामान्य होता है। कोरवा जाति के लोगों का आर्थिक जीवन क्योंकि ये मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते है। इन का घर मिट्टी, घास-फूस, लकड़ी व बांस का बना होता है घरों में उपयोग होने वाली वस्तुओं जैसे मिट्टी के बर्तन, बांस की टोकरी, कुल्हाड़ी औज़ार, तीर- धनुष आदि होते है। कई कोरवा पहाड़ी इलाकों में बस गए और कुछ मैदानी इलाको में आ गए। मैदानी इलाकों वाले कोरवा कोदो -कुटकी, उड़द, मौसमी भाजी, मक्का, कुरथी, आदि का खेती करके अपना जीविका चलाते है। पहाड़ी इलाका वाले कोरवा का जीवन जंगलों जैसे; जंगलों से चार, तेंदू व तेंदू के पत्ते, शहद, कंद- मूल व जड़ीं -बूटी और ये सभी को एकट्ठा करके बाजार में बेचते है। और कुछ लोग शिकार पर निर्भर रहते है। कोरवा जनजातियों का भोजन कोदो -कुटकी,मौसमी भाजी, गोंदली, पेज़ भात, मछली, केकड़ा, मुर्गा, सुअर, खाते है। महुवा का शराब बना कर पीते है। पुरुष लोग चोंगी बनाकर पीते है।
कोरवा जनजातियों का महत्वपूर्ण त्यौहार (Korwa Tribes Festivals):-
कोरवा जनजाति के लोग नवाखानी, होली, दिवाली, सोहराई, दशहरा आदि मानाते है।
कोरवा जनजातियों का लोकगीत एवं लोकनृत्य (Korwa Tribes Folk Song and Dance):-
इनकी मुख्य लोकगीतों में बिहाव गीत, करमा गीत, व फाग गीत आदि है और इस जनजाति में बिहाव, परघनी, रहस, करमा आदि नाचते है। और नाचते समय ढोल, मंदर, मृदंग, टिमकी, नगाड़ा, धनक, दफ़ली आदि बजाए जाते हैं। पहाड़ी कोरवा का प्रमुख नृत्य दमनज है।
कोरवा जनजाति के देवी देवता (God of Korwa Tribes):-
कोरवा जनजाति के लोग- ठाकुर देव, खुड़ियारानी, गृहदेव, पितृदेव, दुल्हादेव और शीतलामाता आदि इनके मुख्य देवी देवता है। इसके अलावा धरती, चाँद, नदी, पहाड़ आदि देवी देवताओं की पुजा करते है। और इस जाति में अलौकिक शक्ति, आत्माओं व जादू टोना, व मंत्रों पर विश्वास करते है।
कोरवा जनजाति का विवाह संस्कार (Wedding Ceremony in Korwa Tribe):-
कोरवा जनजाति विवाह में घुसबैठ, लमसेना, ठुकु विवाह, मंगी विवाह आदि होती है।
जीवन चक्र
कोरवा जनजाति में शिशु जन्म को भगवान की देन माना जाता है। इनमें प्रसव के लिए पत्तों द्वारा बनाया गया झोपड़ी होता है। जिसे कुंबा कहा जाता है। मुख्य रूप से प्रसव इसी स्थानीय जगह पर दाई जिसे"डोंगिन" कहा जाता है।
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