मुण्डा जनजाति | Munda Janjati in Hindi

Munda Janjati in Hindi

इस पोस्ट मे मुण्डा जनजाति (Munda Tribes Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, रहन-सहन, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि एवं खान-पान, रीति-रिवाज, त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।


Munda Tribes Overview
जनजाति का नाम मुण्डा जनजाति
मुण्डा जनजाति की उपजाति हो, संथाल, बिरोम्या और कोल्हा
मुण्डा जनजाति का गोत्र भेंगरा, बोदरा, परती, इंद, जिरहल मुंदरी, निमक, अम्बा, वलुभ, गोंदली
निवास स्थान उत्तरप्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा, कोरबा, बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, कांकेर, नारायणपुर, राजनंदगाँव, बीजापुर, कोंडागाँव जिलों में तथा बिहार आदि जगहों में निवास करते है।
मुण्डा जनजाति की भाषा एवं बोली मुण्डारी भाषा, उरांव, कुडुख, बिहारी, छत्तीसगढ़ी
कुल जनसंख्या 1049767 लगभग

मुण्डा जनजाति (Munda Janjati):-

मुण्डा जनजाति का मुख्य स्थान झारखण्ड है। लेकिन खैरवार जनजाति की तरह मुण्डा जनजाति के लोग भी छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों जैसे:-जशपुर, सरगुजा, कोरबा, बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, कांकेर, नारायणपुर, राजनंदगाँव, बीजापुर, कोंडागाँव आदि जिलों में निवास करते है। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या लगभग 1049767 है।


मुण्डा जनजाति का इतिहास (History of Munda tribe):-

मुण्डा जनजाति का इतिहास एवं उत्पत्ति कोलारीयन समूह (Kolarian tribes) से हुआ है। तथा इनके पूर्वज बिरसा मुण्डा को माना जाता है जो 19वी शताब्दी के भारतीय सेनानी थे। इन्होने अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया जिसे आज "बिरसा मुण्डा आंदोलन" के नाम से जाना जाता है। बिरसा मुण्डा आंदोलन, जबरजस्ती धर्मांतर एवं अंग्रेज़ो के अत्याचार के खिलाफ था। इस आंदोलन के बाद बिरसा मुण्डा को मुण्डा जनजाति एवं आदिवासी के लोग भगवान मनाने लगे। मुंडा जनजाति के लोग प्राचीन काल में उत्तरी पश्चिम भारत में रहते थे। तत्पश्चात कार्यों के आगमन से ये लोग आजमगढ़ होते हुये छोटा नागपुर का पठार में आए। इनमें से कुछ लोग छत्तीसगढ़ के सरगुजा तथा जशपुर के जंगलों में बस गए।


मुण्डा जनजाति मूल रूप से उत्तरी-पश्चमी भारत के निवासी थे, जो मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire or The Mauryan Empire) के आगमन के समय आजमगढ़ (उत्तरप्रदेश मे स्थित) मे प्रवेश किए। इनकी कुछ समूह छत्तीसगढ़ के सरगुजा एवं जशपुर, झारखंड के राँची (छोटानागपुर) एवं बिहार मे प्रवेश किये। आज इनकी जंजातियों का समूह भारत के बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश राज्यों के मूल निवासी है। ये अन्य जंजातियाँ जैसे - कंवर, उरांव एवं नागेसिया जनजाति के बस्तियों मे वास करते हैं।


छत्तीसगढ़ राज्य एक भारतीय राज्य है जिसमें मुण्डा जनजाति का महत्वपूर्ण इतिहास है। मुण्डा लोग एक आदिवासी समुदाय हैं, जो भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्रीय आदिवासियों में से एक हैं। छत्तीसगढ़ के क्षेत्रफल के एक बड़े हिस्से में मुण्डा लोग रहते हैं, जो प्राचीन इतिहास से जुड़े हुए हैं और अपनी संस्कृति, भाषा और लोक कला के लिए प्रसिद्ध हैं। मुण्डा जनजाति का इतिहास छत्तीसगढ़ के प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। इनका प्रारंभिक इतिहास वैदिक काल तक जाता है, जब उनकी जनसंख्या और क्षेत्रफल काफी बड़ा था। मुण्डा लोग कभी-कभी पहाड़ी क्षेत्रों में बस्तियां बनाते थे और खेती करके अपना जीवन व्यतीत करते थे।


ब्रिटिश शासन के समय, मुण्डा लोग छत्तीसगढ़ के अलग-अलग क्षेत्रों में रहते थे। उनका जीवन परंपरागत रूप से बित रहा था, जिसमें वनस्पतिक औषधियों का उपयोग, पेड़-पौधों की पूजा, और अपनी लोक कलाओं का अभ्यास था। ब्रिटिश शासन के दौरान, मुण्डा लोगों का जीवन व्यवस्था में परिवर्तन हुआ, और उन्हें अलग-अलग खेती करने के लिए मजबूर किया गया। इस समय तक मुण्डा लोग धीरे-धीरे खेती करना शुरू कर दिये थे। आज़ादी के बाद, छत्तीसगढ़ को 1 नवंबर, 2000 को एक अलग राज्य घोषित किया गया, तब से मुण्डा लोग छत्तीसगढ़ के आदिम आदिवासियों में एक मुख्य स्थान प्राप्त कर चुके हैं। उनका जीवन व्यवस्था और आर्थिक स्थिति अभी भी बहुत कठिन है। सरकारी योजनाओं और एनजीओं के माध्यम से, मुण्डा लोगों के जीवन को सुधारने की कोशिश की जा रही है।


मुण्डा लोग अपनी परंपराओं को जिंदा रखने में जुटे हुए हैं। उनकी लोक कला, नृत्य, गीत, और कथाओं में उनका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धंधा है। मुण्डा समुदाय के लोग भगवान, प्रकृति और अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं। उनका महत्वपूर्ण त्योहार "सरहुल" है, जिसमें प्राकृतिक देवी-देवताओं की पूजा होती है और समुदाय के साथियों के साथ साथ भोजन का आनंद लिया जाता है। इस प्रकार, छत्तीसगढ़ में मुण्डा जनजाति का पूरा इतिहास उनकी परंपराओं से जुड़ा हुआ है, जो उनकी संस्कृति और लोक संस्कृति की मूलभूत बुनियाद है। उनका जीवन, उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने में अहम है और उन्हें अपना सम्मान और अधिकार प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता है।


मुण्डा जनजाति की भाषा एवं बोली (language of munda tribe)

मुण्डा जनजाति की इनकी भाषा स्थान विशेष होता है, जैसे की छतीसगढ़ के मुण्डा जंजातियों का विशेष बोली छत्तीसगढ़ी, कुड़ुख (उरांव) एवं सादरी, झारखंड के मुण्डा जनजाति झारखंडी एवं बिहार मे बिहारी भाषा बोली जाती हैं। शिक्षा के प्रसार से हिन्दी एवं अँग्रेजी भाषाओं का आगमन हुआ, जिन्हे इन जंजातियों के द्वारा अपनाया गया।


मुण्डा जनजाति की भाषा और बोली के बारे में बात करें तो, मुण्डा जनजाति की प्रमुख भाषा है "मुण्डारी भाषा" (Mundari Language) जो मुण्डा भाषा परिवार का एक भाषा समूह है। मुण्डारी भाषा भारत के झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बंगाल और बिहार राज्यों में बोली जाती है।


मुण्डारी भाषा एक ड्राविड़ी भाषा है और मुण्डा जनजाति के लोग इसे अपनी भाषा के रूप में बोलते हैं। यह उनकी संस्कृति और भाषा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उन्हें अपने अपने संबंधों में संवाद करने का माध्यम प्रदान करती है। मुण्डारी भाषा में विभिन्न भाषा-विशेषताएँ होती हैं, जो उसको अनूठा बनाती हैं। इसमें कई वर्णमालाएं, संधियाँ और वाक्य रचनाएँ होती हैं। यह एक समृद्ध भाषा है जिसमें साहित्यिक गद्य, गीत, और कविताएँ भी होती हैं जो मुण्डा जनजाति की संस्कृति और विरासत को अभिव्यक्त करती हैं।


मुण्डा जनजाति की वस्त्र एवं आभूषण (Clothing and ornaments of Munda Janjati):-

मुंडा जनजाति की वेशभूषा अपनी परंपरागत संस्कृति की माध्यम से संवारते हैं। उनके पहनावे और आभूषण उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा हैं और उनकी विशेषता को प्रकट करते हैं। निम्नलिखित हैं, मुण्डा जनजाति के वस्त्र और आभूषणों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ:


परंपरागत पोशाक (Traditional Attire): मुण्डा जनजाति के लोग अपने परंपरागत पोशाक में बहुत आकर्षक दिखते हैं। पुरुष वस्त्र में धोती और ऊपरी वस्त्र जैसे एकल वस्त्र और अंगूठे की रसी या पट्टी शामिल होती हैं। स्त्रियों के वस्त्र में साड़ी और ब्लाउज शामिल होते हैं।


जेवर (munda tribe jewellery): मुंडा जनजाति के गहने मुण्डा जाति के लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। पुरुष लोग हाथ, गर्दन और कान के लिए सोने या लोहे के अंगूठे, बाजूबंद, गोल्डन आर्मलेट, और कड़ी पहनते हैं। स्त्रीयों के जेवर में मांग टीका, कान की बाली, हाथ में बाजूबंद और पांची आदि शामिल होते हैं।


हाथ कृति (Handicrafts): मुण्डा जनजाति के लोग अपनी खास हाथ कृति वस्त्रों को भी उत्साह से पहनते हैं। उनके वस्त्रों पर विशेषता से बनाए गए नक्काशी और नरमी का प्रयोग किया जाता हैं, जो उन्हें इस्तीला देते हैं।


गले के हार (Necklaces): मुण्डा जनजाति के लोगों के लिए गले के हार भी आकर्षक अक्सेसरीज़ होते हैं। इनमें सोने, चांदी, धातु या मोती के गहने शामिल होते हैं और ये उनकी परंपरागत संस्कृति को प्रतिष्ठित करते हैं।


मुण्डा जनजाति के वस्त्र और आभूषण उनकी समृद्धि, सांस्कृतिक धरोहर, और भौगोलिक स्थान के अनुसार भिन्नता दिखाते हैं। ये उनके संस्कृति को अभिव्यक्ति का साधन होते हैं और उन्हें उनके जीवनशैली और विशेषता का प्रतीक बनाते हैं।


मुण्डा जनजाति के रहन सहन व संस्कृति (Lifestyle and Sanskrit of Munda Janjati):-

मुण्डा जनजाति छत्तीसगढ़ में रहने के लिए विभिन्न प्रकार के स्थानों का उपयोग करती है,और इनकी संस्कृति विविधता और प्राकृतिकता से भरी हुई है। यहां उनके रहने के तरीके और संस्कृति के कुछ मुख्य पहलू बताए गए हैं:


आवास: मुण्डा जनजाति के लोग अपने आवास को ध्यान से सजाकर और प्राकृतिक सौंदर्य से लबाकर रहते हैं। वे धरती के साथ संवाद बनाए रखने के लिए प्राकृतिक सामग्री जैसे लकड़ी, बांस, छप्पर, ईंधन आदि का उपयोग करते हैं।


पहनावा: मुण्डा लोग अपने पहनावे में स्थानीय संस्कृति का पालन करते हैं। उनके परंपरागत पोशाक में खास आभूषण, लहंगा-चोली, गमछा, मुखोटा, और धातु के बने आभूषण शामिल होते हैं।


भोजन: मुण्डा जनजाति के लोग प्राकृतिक खाद्यान्न का उपयोग करते हैं। उनका भोजन मुख्य रूप से धान, मक्का, जव, अरहर, उड़द और सब्जियों पर आधारित होता है।


धार्मिक अनुष्ठान: मुण्डा जनजाति के लोग अपनी प्राचीन धार्मिक अनुष्ठान में विशेष विश्वास रखते हैं। वे प्रकृति और प्राणीयों की पूजा करते हैं और अपने त्योहारों में सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करते हैं।


नृत्य और संगीत: मुण्डा जनजाति के लोग अपनी संस्कृति को नृत्य और संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। उनके लोक नृत्य जैसे जोहार, बड़जा, नया नया नृत्य, और मंडर नृत्य उनकी संस्कृति का प्रमुख हिस्सा हैं।


ये सभी पहलू बताते हैं कि मुण्डा जनजाति के लोग अपनी संस्कृति को अधिकतर प्राकृतिक और संवेदनशील ढंग से जीते हैं, जो उन्हें एक अद्भुत और समृद्ध जीवनशैली का अनुभव करने का अवसर देती है। इनके साथी लोगों के साथ मिलकर वे अपनी संस्कृति को जीवित रखते हैं और अपने पूर्वजों के विरासत को मानकर उसके आदर्शों पर चलते हैं।


मुण्डा जनजातियो की कृषि (Agriculture of Munda Janjati):-

मुंडा जनजाति के सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति छत्तीसगढ़ में जैसे अन्य आदिवासी समुदायों के लोग भी प्राकृतिक रूप से जीवन व्यतीत करते हैं और खासकर कृषि और उससे संबंधित गतिविधियों पर निर्भर करते हैं। छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है जिसमें खेती और गैर-कृषि संबंधी गतिविधियों का महत्वाकांक्षी अंश रहता है। मुण्डा जनजाति के लोग मुख्य रूप से शिकार, वन्यजीव एवं खेती पर आश्रित होते हैं। वे पारंपरिक तरीके से कृषि का अभ्यास करते हैं और प्राकृतिक रूप से उगाई जाने वाली फसलें जैसे:- धान, जव, मक्का, रागी, मटर आदि जैसे अनाजों का उत्पादन करते हैं। इन्हें वन्यजीवियों और समुदाय के प्राकृतिक संसाधनों के साथ एकसाथ काम करने का अनुभव है।


जीवन के इस तरीके से, मुण्डा जनजाति के लोग अपने परंपरागत जीवनशैली को जारी रखते हैं और खेती और अन्य गतिविधियों में अपने जीवन को बिताते हैं। वे अपनी जमीन, वन्य फसलें, और जलवायु के साथ जुड़े हुए हैं जो उन्हें उत्पादक और स्वावलंबी बनाता है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों, जिनमें मुण्डा भी शामिल है, के जीवनशैली और खेती विधि में स्थानीय परंपराओं का ध्यान रखते हुए विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ताकि उन्हें आर्थिक रूप से समृद्धि मिल सके और उनकी संस्कृति, परंपरा और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा हो सके।


मुण्डा जनजाति के प्रमुख त्यौहार (Major festivals of Munda Janjati):-

मुण्डा जनजाति के लोग अपने संस्कृति और परंपरागत धार्मिक अनुष्ठानों के लिए कई प्रमुख त्योहार मनाते हैं। इन त्योहारों में भगवानों की पूजा-अर्चना, रक्षा और उनके सांस्कृतिक धार्मिक अभिष्ट के प्रती आदर्शपूर्वक विधान होते हैं। कुछ प्रमुख त्योहार निम्नलिखित हैं:


सरहुल देव: सरहुल देव एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे मुण्डा जनजाति के लोग मनाते हैं। इस त्योहार में मुण्डा जनजाति के लोग सरहुल देवता की पूजा करते हैं और उन्हें खुशियों और समृद्धि के लिए विशेष प्रार्थना करते हैं।


आरिक-पूजा: आरिक-पूजा भी मुण्डा जनजाति का एक प्रमुख त्योहार है, जो भूतों और पृथ्वी देवता की पूजा का अवसर होता है। इस त्योहार में भगवान और प्राकृतिक शक्तियों को ध्यान में रखते हुए उनकी पूजा और अर्चना की जाती है।


बेहोर त्योहार: बेहोर त्योहार मुण्डा जनजाति के लोगों के बीच खास धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। इस त्योहार के दौरान मुण्डा लोग विशेष उत्साह और भक्ति के साथ आरती और भजनों का समारंभ करते हैं।


छवल दिवस: छवल दिवस मुण्डा जनजाति के लोगों के बीच खास उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन मुण्डा लोग धान की उपज का धन्यवाद देते हैं और धान की अन्नदान देने का संकल्प लेते हैं।


सरहुला त्यौहार: सरहुला त्यौहार मुण्डा जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध त्यौहार हैं। यह त्यौहार बैगा रिजर्व में मनाया जाता हैं और इसका उद्देश्य समाज के सदस्यों के बीच एकता और भाईचारे को मजबूत करना होता हैं। सरहुला त्यौहार में लोग खुशियों के साथ नाच, गान और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।


हुल्या त्यौहार: हुल्या त्यौहार मुण्डा जनजाति का एक अन्य प्रसिद्ध त्यौहार हैं। यह त्यौहार फागुन महीने में मनाया जाता हैं और इसके दौरान लोग खुशियों के साथ नृत्य, गान और खेलते हैं।


बिढ़ल त्यौहार: बिढ़ल त्यौहार मुण्डा जनजाति में आनंद का एक और अवसर हैं। इस त्यौहार में लोग समाजिक अवसरों पर मिलते हैं और खुशियों के साथ नाच, गान और मनाते हैं।


होरह (Horah) त्यौहार: होरह त्यौहार मुण्डा जनजाति का धार्मिक त्यौहार हैं, जिसमें भगवान की प्रशंसा और धार्मिक अनुष्ठान किया जाता हैं। ये त्योहार मुण्डा जनजाति के समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के महत्वपूर्ण हिस्से हैं जो उनकी संस्कृति को समृद्ध और जीवंत रखते हैं।


मुण्डा जनजाति के प्रमुख लोकगीत एवं लोकनृत्य (Major folk songs and folk dances of Munda Janjati):-

लोकगीत- मुण्डा जनजाति की प्रमुख लोकगीत करमा, सरहुल, फाग, विवाह आदि हैं, जो उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा हैं। इन गीतों में भगवानों की प्रशंसा, प्राकृतिक सौंदर्य, लोकजीवन, उत्सवों का जश्न, और समाज के मुद्दों पर गाना गाया जाता है। तथा कुछ प्रमुख मुण्डा जनजाति के लोकगीत निम्नलिखित हैं:


हुल्या गीत: हुल्या गीत एक प्रसिद्ध लोकगीत हैं, जो हुल्या नृत्य के समय पर गाये जाते हैं। ये गीत हुल्या नृत्य को और उत्साही और जीवंत बनाते हैं और लोग इसे खेतों में, उत्सवों में और समाजिक अवसरों पर गाते हैं।


जोहार गीत: जोहार गीत भी मुण्डा जनजाति के लोकगीतों में एक प्रसिद्ध गाना हैं। इसमें भगवानों की प्रशंसा, प्राकृतिक सौंदर्य, और समाज के मुद्दों पर गीत गाये जाते हैं।


भांजा गीत: भांजा गीत भी मुण्डा जनजाति के प्रमुख लोकगीतों में से एक हैं। इसमें प्राकृतिक सौंदर्य, समाजिक मुद्दे और लोगों के जीवन के विभिन्न पहलूओं पर गीत गाये जाते हैं।


सरहुला गीत: सरहुला गीत सरहुला नृत्य के समय पर गाये जाते हैं और इसमें प्राकृतिक सौंदर्य, उत्साह, और खुशियों के अनुभव को बयान करने वाले गीत गाए जाते हैं।


ये सभी लोकगीत मुण्डा जनजाति की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और इन्हें समृद्धि, सामाजिक एकता, और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक माना जाता हैं।


लोकनृत्य- मुण्डा जनजाति के लोग अपनी संस्कृति को नृत्य (Loknritya) के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। इनके पास कई प्रमुख लोकनृत्य हैं जैसे करमा, सोहराई, बिहाव नृत्य, सरहुल नृत्य एवम फाग जो उनके समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा हैं और इन्हें अलग और रंगीन बनाते हैं। कुछ प्रमुख लोकनृत्य निम्नलिखित हैं:


हुल्या: हुल्या मुण्डा जनजाति का प्रमुख और पसंदीदा नृत्य हैं। इसमें मुण्डा लोग समृद्धि और खुशियों के अवसर पर आनंद और उत्साह के साथ नृत्य करते हैं। हुल्या नृत्य में लोग झूमने, घुमने, और अलग-अलग गतिविधियों के साथ एक साथ नाचते हैं।


मुण्डा डिमसा: मुण्डा डिमसा भी मुण्डा जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य हैं। इस नृत्य में लोग अपने पारंपरिक उत्सवों और त्योहारों के अवसर पर नृत्य करते हैं। इसमें लोग जोड़ी बनाकर झूमने और घुमने के आकृतियों का उपयोग करते हैं।


सरहुला: सरहुला नृत्य भी मुण्डा जनजाति के लोगों के बीच प्रसिद्ध हैं। इस नृत्य में लोग खेती और उत्सवों के अवसर पर नृत्य करते हैं। इसमें लोग भगवान की पूजा के साथ-साथ ध्वज झुकाने, फूल चढ़ाने और आरती करने के साथ नृत्य करते हैं।


जोहार नृत्य: जोहार नृत्य मुण्डा जनजाति के अन्य लोक नृत्यों में से एक हैं। इस नृत्य में लोग झूमने और उत्साह से नाचते हैं और ध्वजारोहण और आरती के साथ धार्मिक रूप से नृत्य करते हैं।मुण्डा जनजाति के इन लोक नृत्यों में संस्कृति, रंगीनता, और आनंद की भरमार होती हैं। ये नृत्य उनके सामाजिक और धार्मिक अनुष्ठानों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उन्हें संस्कृति की अमूल्य धरोहर का अहसास कराते हैं।


मुण्डा जनजातियो के देवी-देवता (Gods and Goddesses of Munda Janjati):-

मुण्डा जनजाति की संस्कृति में कई प्रमुख देवी-देवताओं की पूजा और उनके चरित्र के विकास को महत्व दिया जाता है। इनमें कुछ प्रमुख देवी-देवताएं हैं:


ढरी-पेन: ढरी-पेन एक महत्वपूर्ण देवी हैं, जिन्हें मुण्डा जनजाति का सर्वोच्च देवी-देवता माना जाता है। उन्हें वन, प्राकृतिक शक्तियों, और सृष्टि की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।


सारन बुरु: सारन बुरु एक प्रमुख देवता हैं जिन्हें मुण्डा लोग भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। उन्हें कृषि, उपजाऊ वन्य फसलों, और संसार की रक्षा के लिए पूजा जाता है।


बुरु बुरु: बुरु बुरु एक और प्रमुख देवता हैं जो मुण्डा जनजाति के लोगों की भगवान शिव की अवतारिता कहलाते हैं। उन्हें शक्ति, सृष्टि, और संहार के लिए पूजा जाता है।


जगदानी देवी: जगदानी देवी मुण्डा जनजाति की माता कहलाती हैं और उन्हें संसार की रक्षा के लिए देवी दर्शाया जाता है।


हुल: हुल भी मुण्डा जनजाति के प्रमुख देवता में से एक हैं, जो भूतों और भू-प्रकृति से जुड़ी देवी मानी जाती है।


ये देवी-देवताएं मुण्डा जनजाति के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी पूजा और उपासना उन्हें अपने पूर्वजों के संस्कृति और विरासत के प्रती आदर्शपूर्वक जीने में मदद करती हैं।


मुण्डा जनजाति में विवाह (Marriage in Munda Janjati):-

मुण्डा जनजाति में विवाह (Vivaah) एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर होता हैं। विवाह एक आदर्शपूर्वक और विशेष उत्सव होता हैं, जिसमें वर और वधु के परिवार और समुदाय के सदस्य एक साथ आते हैं और साथ ही साथ शादी के रस्मों और अनुष्ठानों का पालन करते हैं। विवाह के दौरान कई पद्धतियां और परंपराएं पाली जाती हैं, जो समृद्ध संस्कृति और धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा हैं।


कुछ मुख्य तथ्य विवाह सम्बंधी प्रक्रिया के बारे में:

देखभाल और संपर्क: विवाह के लिए पहले से ही दोनों परिवारों के सदस्य एक-दूसरे के साथ संपर्क में आते हैं और दूल्हे और दुल्हन को मिलाया जाता हैं। इसके दौरान वर और वधु के परिवार द्वारा एक-दूसरे की सामग्री और परिवार की विवाह से जुड़ी जानकारी आपसी बातचीत के लिए इस्तेमाल की जाती हैं।


मंगलसूत्र धारण: विवाह के दिन दुल्हन को दुल्हे द्वारा मंगलसूत्र पहनाया जाता हैं, जो उनकी सामाजिक स्थिति का प्रतीक होता हैं और इसे विवाह के रिश्ते को स्थायी बनाने के लिए प्रयोग किया जाता हैं।


स्वयंवर या कन्या दान: मुण्डा जनजाति में विवाह रस्मों का एक महत्वपूर्ण पहलू हैं। इसमें दुल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन को एक पब्लिक अवसर में दिए जाते हैं और वह फिर उन्हें स्वयं चुनती हैं। यह उनकी स्वतंत्रता का प्रतीक हैं और उन्हें संतुष्टि और आनंद का अनुभव करने का मौका देता हैं।


विवाह संस्कार: विवाह के दौरान धार्मिक संस्कार भी किये जाते हैं, जिसमें पंडित द्वारा मंत्रों का पाठ किया जाता हैं और दुल्हे-दुल्हन को धार्मिक मार्गदर्शन दिया जाता हैं।


बन्धना और बारात: विवाह के दिन दुल्हे के परिवार द्वारा बारात लेकर दुल्हन के घर जाते हैं। इसमें वर और दुल्हन को बन्धना धारण करके दोनों परिवारों के सदस्य एक साथ खुशियों के साथ मिलते हैं। विवाह मुण्डा जनजाति की समृद्ध सांस्कृतिक और सामाजिक धार्मिकता का प्रतीक हैं, जो उनके समाज के महत्वपूर्ण अवसरों में खास रूप से मनाया जाता हैं।


मुण्डा जनजाति में विवाह के लिए कई प्रथाएं होती हैं, जो समृद्ध सांस्कृतिक और सामाजिक अवसरों में पाली जाती हैं। कुछ प्रमुख विवाह प्रथाएं निम्नलिखित हैं:

स्वयंवर विवाह: स्वयंवर विवाह मुण्डा जनजाति में प्रसिद्ध हैं। इस प्रथा में दुल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन को एक सार्वजनिक अवसर में प्रस्तुत किया जाता हैं और वह फिर उन्हें स्वयं चुनती हैं। यह प्रथा उन्हें स्वतंत्रता और आज़ादी का संकेत करती हैं और उन्हें अपने जीवनसाथी का चयन स्वयं करने का अवसर देती हैं।


बाहरादिर विवाह: बाहरादिर विवाह भी मुण्डा जनजाति में प्रसिद्ध हैं। इसमें वर और वधु के परिवार एक-दूसरे के साथ संपर्क में आते हैं और विवाह के लिए सहमति और आदेश लेते हैं। इस प्रक्रिया में पंडित द्वारा मंत्रों का पाठ किया जाता हैं और विवाह के धार्मिक संस्कार निभाए जाते हैं।


दहेज प्रथा: मुण्डा जनजाति में दाहेज प्रथा भी व्यापक रूप से पाई जाती हैं। इस प्रथा के अनुसार, वधु के परिवार द्वारा वर के परिवार को विवाह के अवसर पर विभिन्न आवश्यक सामग्री और धनराशि दी जाती हैं। यह प्रथा वधु के परिवार के लिए आर्थिक बोझ के रूप में बन जाती हैं और इसका कुछ दूष्प्रभाव भी होता हैं।


विवाह अनुष्ठान: विवाह के दिन विशेष विवाह अनुष्ठान भी होते हैं, जिसमें धार्मिक संस्कार, पंडित द्वारा मंत्रों का पाठ और परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर धार्मिक अनुष्ठान किया जाता हैं। ये प्रमुख विवाह प्रथाएं मुण्डा जनजाति की संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं और उन्हें समृद्धि, सामाजिक एकता, और परंपरागतता को संजीवनी देती हैं।


मुण्डा जनजाति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य (FQA):-

मुंडा लोग कौन थे?
मुंडा कोलारियन समूह की एक जनजाति है। जो मुख्य रूप से उत्तरी-पश्चिम भारत में रहते थे।
मुण्डा का क्या अर्थ है?
मुण्डा का अर्थ शक्तिशाली मुखिया से है, जो अपने समाज का मुख्य सदस्य होता है जिसका काम सामाज के विकास के लिए उसका मार्गदर्शन कराना है।
मुंडा जाति का गोत्र क्या है?
मुण्डा जनजाति का गोत्र होरो है। बिरसा मुण्डा का गोत्र भी होरो था इसी कारण से मुण्डा जनजाति के लोग इन्हे अपना अनुयायी मानते हैं। इनके कुछ और प्रमुख गोत्र है भेंगरा, बोदरा, परती, इंद, जिरहल मुंदरी, निमक, अम्बा, वलुभ, गोंदली आदि।
मुण्डा जनजाति की उपजाति क्या है?
मुण्डा जनजाति की प्रमुख उपजाति हो, संथाल (संताल), बिरोम्या (बिरहोर), एवं कोल (कोल्हा) हैं।
मुंडा जनजाति में धार्मिक प्रधान क्या कहलाता है?
मुंडा जनजाति में धार्मिक विशेषज्ञ "पाहन" कहलाता है।
मुंडा जनजाति किस-किस राज्य में पाई जाती है?
झारखंड, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश राज्य में पाये जाते हैं।
मुण्डा क्या है?
मुण्डा जनजाति का नाम उनकी भाषा "मुण्डारी" से आया है। मुण्डारी भाषा मुण्डा जनजाति के लोगों की मुख्य भाषा है। इसे "कुडुक" या "कुडुक मुण्डा" भी कहते हैं। इसी कारण से इनका नाम मुण्डा रखा गया है।
मुण्डा जनजाति कहा निवास करते हैं?
मुण्डा जनजाति झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा, कोरबा, बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, कांकेर, नारायणपुर, राजनंदगाँव, बीजापुर, कोंडागाँव जिलों में तथा बिहार आदि जगहों में निवास करते है।
मुंडा जाति कहाँ पाई जाती है?
मुण्डा जनजाति मुख्य रूप से उत्तरी पश्चचिम भारत में पाई जाती है। आर्यों के आगमन के कारण वे आजमगढ़ की ओर चले गए। उसके बाद छोटा नागपुर में प्रवेश किए। इनमें से कुछ छत्तीसगढ़ के सरगुजा व जशपुर के जंगलों में बस गए।
मुंडा जनजाति किस देवता को मानते हैं?
इनका प्रमुख देवता सिंगबोंगा का अर्थ-(सूर्यदेव) है। इसके अलावा चांडी, हातु बोंगा, ओराबोंगा, ढरी-पेन, सारन बुरु, बुरु-बुरु, जगदानी देवी एवं हुल देवी आदि देवताओं को मानते हैं।
बिरसा मुंडा किस क्षेत्र के निवासी थे?
बिरसा मुंडा झारखंड के छोटा नागपुर क्षेत्र के निवासी थे।
मुंडा जनजाति में सिंह का अर्थ क्या है?
मुंडा जनजाति में "सिंह" का अर्थ "लड़ाई" या "योद्धा" होता है। और उन्हें अपने बहादुरी और साहस के लिए पहचाना जाता है। इसलिए, "सिंह" शब्द मुंडा जनजाति में गर्व और शौर्य की प्रतीक है।
Festival of munda tribe
Main festival of munda tribes Sarhul, karma, soharai(Dipawali), phagun(Holi)
What is the language of munda tribe
The main language of Munda tribes is Mundari and saadri.
मुंडा जाति का गोत्र लिस्ट
भेंगरा, बोदरा, परती, इंद, जिरहल मुंदरी, निमक, अम्बा, वलुभ, गोंदल

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