सवरा जनजाति| Savra janjati Hindi

इस पोस्ट मे सवरा जनजाति (Savra Tribes Lifestyle) के बारे मे, उनके इतिहास, संस्कृति, भाषा एवं बोली, विवाह प्रथा, कृषि त्योहार एवं देवी देवताओ के बारे मे जानकारी दी गयी है।


Savra Tribes Overview
जनजाति का नाम सवरा जनजाति
सवरा जनजाति का गोत्र इनमें भैंसा, भोई, बाघ, बनमूला, बीछी, नाग, गुरिया, बहरा, हथिया, बकुला आदि गोत्र पाये जाते हैं।
सवरा का निवास स्थान छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा

सवरा जनजाति (Savra tribe)- सवरा जनजाति छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा, सुकमा, कांकेर और बीजापुर जिले में भी सवरा जनजाति की उपस्थिति है। यह क्षेत्र भी आदिवासी जनसंख्या से भरा हुआ है। ये क्षेत्र सवरा जनजाति के लोगों के पारंपरिक निवास स्थल हैं, और यहाँ की सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ जनजाति की पहचान और जीवनशैली को दर्शाती हैं।


सवरा जनजाति का इतिहास (History of Savra Tribe):-

दंतकथाओं के अनुसार भगवान महादेव ने पृथ्वी, समुद्र, नदी, पहाड़, जंगल पशु-पक्षी बनाने के बाद आदिवासियों की उत्पत्ति की। इन्हें खेती का कार्य सीखाने के लिये एक हल बनाया। तत्पश्चात्‌ सवरा जाति के पूर्वज को कुल्हाड़ी देकर जंगल को काटकर खेती योग्य मैदान बनाने को कहा तथा अपने वाहन नंदी को वहीं छोड़कर हल में नंदी की जोड़ी बैल लेने के लिये भगवान महादेव चले गये। सवरा ने अपनी कुल्हाड़ी से जंगल को काटकर खेती योग्य मैदान तैयार किया किन्तु इस कार्य में उसे बहुत जोर से भूख लगी। उसने आस-पास खाने की वस्तु खोजा, कुछ न मिलने पर उसने नंदी को मारकर उसका मांस खा लिया। महादेव वापस लौटे तथा जंगल को खेती लायक साफ देखकर सवरा पर प्रसन्न होकर उसे मंत्र-तंत्र, जड़ी-बूटी का ज्ञान प्रदान किया। तत्पश्चात्‌ महादेव अपने वाहन नंदी को ढूंढने लगे। मरे हुए नंदी को देखकर सवरा को श्राप दिया कि तुम और तुम्हारे वंशज भूखे रहोगे। तब से गरीबी इनके साथ जुड़ी मानी जाती है।


सवरा जनजाति की उपजाति(Sub-caste of Savra tribe):-

सवरा जनजाति भारतीय आदिवासी समुदायों में से एक है, जो मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा राज्यों में पाई जाती है। सवरा जनजाति की उपजातियाँ विविध हो सकती हैं, और ये उपजातियाँ आमतौर पर सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर विभाजित होती हैं।

सवरा जनजाति की उपजातियाँ:

साम्भल: यह उपजाति मुख्यतः छत्तीसगढ़ और झारखंड में पाई जाती है। साम्भल उपजाति के लोग अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक अनुष्ठानों के लिए जाने जाते हैं।

कोरवा: कोरवा उपजाति भी सवरा जनजाति का हिस्सा है और यह मुख्यतः छत्तीसगढ़ में निवास करती है। ये लोग अपनी विशेष जीवनशैली और संस्कृति के लिए जाने जाते हैं।

सवरा: सवरा जनजाति की एक और उपजाति जिसे खुद को सवरा ही कहा जाता है। ये उपजाति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक और सामाजिक विशेषताओं के साथ निवास करती है।


सवरा जनजाति की भाषा एवं बोली(Language and dialect of Savra tribe):-

सवरा जनजाति की भाषा और बोली उनके सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

सवरा जनजाति की बोली

भाषा का नाम:

सवरा जनजाति की भाषा को सामान्यत: सवरा या सोरवा बोली के रूप में जाना जाता है। यह भाषा मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, और ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में बोली जाती है।


भाषाई परिवार:

सवरा बोली द्रविड़ीय भाषा परिवार की एक शाखा से संबंधित मानी जाती है, हालांकि इसकी विशेष भाषाई श्रेणी अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। यह बोली स्थानीय आदिवासी भाषाओं के साथ मिश्रित हो सकती है।


लिपि और लेखन प्रणाली:

सवरा बोली की कोई निर्धारित लिपि या लेखन प्रणाली नहीं है। अधिकांश सवरा जनजाति के लोग मौखिक परंपरा पर आधारित होते हैं और अपनी भाषा को मौखिक रूप से ही संरक्षित करते हैं। आधुनिक युग में, कुछ सवरा लोग हिंदी या अन्य स्थानीय भाषाओं के माध्यम से अपनी जानकारी और संवाद को व्यक्त करते हैं।


संरचना और शब्दावली:

सवरा बोली की शब्दावली और वाक्य संरचना स्थानीय सांस्कृतिक और पारंपरिक संदर्भों पर आधारित होती है। इसमें परंपरागत जीवन, धार्मिक अनुष्ठान, और समाजिक गतिविधियों से संबंधित विशेष शब्द और वाक्यांश होते हैं।


मौखिक परंपरा:

सवरा जनजाति की भाषा में मौखिक परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। उनके लोक गीत, कहानियाँ, और किवदंतियाँ मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी संप्रेषित की जाती हैं। इन कथाओं में उनकी सांस्कृतिक पहचान, धार्मिक विश्वास और पारंपरिक ज्ञान समाहित होते हैं।


भाषाई विविधता:

सवरा बोली में क्षेत्रीय विविधता हो सकती है। विभिन्न क्षेत्रों में बोले जाने वाले सवरा भाषा के अलग-अलग रूप और बोली हो सकते हैं, जो स्थानीय बोलचाल और सांस्कृतिक प्रभाव के आधार पर भिन्न होते हैं।


भाषाई संरक्षण:

सवरा जनजाति की भाषा और बोलियाँ अक्सर बाहरी सांस्कृतिक प्रभाव और आधुनिकता के कारण संकटग्रस्त हो सकती हैं। इसलिए, भाषाई संरक्षण और पुनरुद्धार की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं ताकि सवरा भाषा और संस्कृति को संरक्षित किया जा सके।


सवरा जनजातियो की कृषि (Agriculture of savara tribes):-

सवरा जनजाति के लोग जंगली कंदमूल, महुआ, गुल्‍ली, चार, तेन्दु, हर्रा, लाख, गोंद, तेन्दुपत्ता, सरई बीज, एकत्र करना, बेचना, खरगोश, हिरण तथा पक्षियों का शिकार, कृषि तथा मजदूरी इनके आजीविका का प्रमुख साधन है। सवरा जनजाति में पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का व्यापक उपयोग होता है। वे जड़ी-बूटियों और पौधों का उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज के लिए करते हैं। सवरा जनजाति में तंत्र-मंत्र और जादू-टोना की परंपराएँ भी प्रचलित हैं। वे कुछ विशेष मंत्रों और अनुष्ठानों का उपयोग बुरी आत्माओं से बचने, बीमारियों का इलाज करने, या व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने के लिए करते हैं।


सवरा जनजाति का महत्वपूर्ण त्यौहार (Important festival of Savra tribe):-

सवरा जनजाति के लोग रथ यात्रा, होली, नवाखानी, दशहरा, दीवाली, होली आदि त्यौहार मनाते हैं।


सवरा जनजातियो के लोकगीत एवं लोकनृत्य (Folk songs and folk dances of Savra tribes):-

इन गीतों और नृत्यों में अक्सर रहस्यमयी प्रतीक और संकेत होते हैं जो उनके पूर्वजों की कहानियों और विश्वासों को दर्शाते हैं।

सवरा जनजाति के प्रमुख लोकगीत

सवरा जनजाति के लोक गीत विभिन्न त्योहारों और उत्सवों के अवसर पर गाए जाते हैं। प्रत्येक उत्सव के लिए विशिष्ट गीत और संगीत होते हैं जो उस विशेष अवसर की भावनाओं और परंपराओं को दर्शाते हैं।


फसल उत्सव (चपचप / फागुन):

सोनहा गीत: फसल की कटाई और कृषि कार्यों के समय गाए जाते हैं। इन गीतों में फसल की खुशहाली और कृषि के महत्व को मनाने के लिए गीत होते हैं। कृषि कार्यों के दौरान, जैसे कि बीज बोने, खेतों में काम करने, और फसल की कटाई के समय गाए जाते हैं। ये गीत खेतिहर जीवन की खुशियों और संघर्षों को व्यक्त करते हैं।

उत्सव गीत: फसल की समृद्धि के अवसर पर गाए जाते हैं, जिसमें पारंपरिक खुशी और सामुदायिक उत्सव को दर्शाया जाता है।


शादी के समारोह:

शादी के गीत: विवाह समारोह के दौरान गाए जाते हैं, जिसमें शादी की रस्में, परिवार और समुदाय की खुशियाँ, और नवविवाहित जोड़े के लिए शुभकामनाएँ होती हैं।


पारंपरिक युवा समारोह (घोटूल उत्सव):

घोटूल गीत: युवा समारोहों और समरापर्ण की रातों में गाए जाते हैं। ये गीत प्रेम, मित्रता, और सामाजिक संबंधों को दर्शाते हैं।


त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान:

उत्सव गीत: विभिन्न धार्मिक त्योहारों और विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं, जैसे कि दीपावली, होली, और अन्य पारंपरिक पर्व। इन गीतों में त्योहार की खुशी, धार्मिक मान्यताएँ और सांस्कृतिक प्रथाएँ होती हैं।


लोरी के अवसर:

लोरी गीत: बच्चों को सोने के लिए गाए जाते हैं, आमतौर पर रात के समय या बच्चों की विश्राम की अवधि के दौरान। ये गीत माता-पिता के प्यार और स्नेह को व्यक्त करते हैं।


सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव:

सामाजिक गीत: सामान्य सामाजिक समारोहों, सामुदायिक बैठकें, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गाए जाते हैं। इनमें समुदाय के मुद्दों, परंपराओं और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।


सवरा जनजाति के लोकनृत्य

सवरा जनजाति की लोक नृत्य छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये नृत्य परंपराएं उनके जीवन, त्यौहारों और विशेष अवसरों पर आधारित होती हैं।


डंडा नृत्य: यह नृत्य समूह द्वारा किया जाता है और इसमें नर्तक अपने हाथों में लकड़ी के डंडे ले कर नृत्य करते हैं। इस नृत्य के दौरान, नर्तक पारंपरिक संगीत के साथ ताल और लय में डंडों को हिला कर और मार कर विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न करते हैं। यह नृत्य सामाजिक और धार्मिक समारोहों में प्रमुख होता है।


सारही नृत्य: यह नृत्य विशेषकर त्योहारों और उत्सवों के अवसर पर किया जाता है। इसमें नर्तक पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं और परंपरागत गीतों पर नृत्य करते हैं। यह नृत्य सामाजिक एकता और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का प्रतीक होता है।


कथक नृत्य: हालांकि यह विशेष रूप से सवरा जनजाति का पारंपरिक नृत्य नहीं है, लेकिन इसे कुछ सवरा समुदाय द्वारा अपनाया गया है। कथक एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली है, जिसे जनजाति के लोग अपने तरीके से प्रस्तुत करते हैं।


फूलकी नृत्य: इस नृत्य में नर्तक फूलों की तरह सजते हैं और रंग-बिरंगे वस्त्र पहनते हैं। यह नृत्य खासतौर पर फसल के मौसम और फसल की कटाई के समय किया जाता है।


लोहांगी नृत्य: यह एक विशेष प्रकार का समूह नृत्य है जिसमें नर्तक पारंपरिक लोहांगी (एक प्रकार की पारंपरिक चूड़ी) पहनते हैं। यह नृत्य विशेष अवसरों और समारोहों पर किया जाता है और इसमें सांस्कृतिक कथाएँ और परंपराएं दर्शायी जाती हैं।


सवरा जनजातियो के देवी-देवता (Gods and Goddesses of Savra tribes):-

सवरा जनजातियो के प्रमुख देवी-देवता जगन्नाथ भगवान, ठाकुर देव, करिया धुरवा, मातादेवाला, घटवालिन, मैंसासुर, खड़ापार, परूआपार आदि देवी देवताओं को मानते है।


सवरा जनजाति मे विवाह संस्कार (Marriage rites in Savara tribe):-

इनके विवाह में सूक भरना के रूप में चावल, दाल, गुड़, चिवड़ा, लुगड़ा, मंद आदि दिया जाता है।


सवरा जनजाति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य (FQA):-

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